Saturday, July 1, 2017

मेगा मॉक ड्रिल

अगर आप दिल्ली मेट्रो में सफर करते हैं और स्टेशन पर पहुंचने पर अचानक आपका सामना अफरातफरी के माहौल से हो जाए, तो आपको कैसा लगेगा. दिल्ली में 11 मेट्रो स्टेशनों पर शनिवार को एक घंटे के लिए मुसाफिरों का सामना ऐसी ही स्थिति से हुआ.

कोई छात्र डेस्क के नीचे लेटा था, तो कोई अपनी कक्षा से बाहर की तरफ भाग रहा था। कहीं छात्र अपना सर ढंकते नजर आए तो कहीं सहपाठी की मदद करते हुए दिख रहे थे। जिले के 101 स्कूलों में बृहस्पतिवार को यह नजारा देखने को मिला। आप सोच रहे होंगे कि स्कूलों में कोई हादसा हो गया हो, जिसकी वजह से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई, लेकिन जरा ठहरिये। यह कोई हादसा नहीं था बल्कि किसी आपदा से निपटने के लिए आयोजित मेगा मॉक ड्रिल का दृश्य था।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा के 101 स्कूलों में सुबह 11 बजे मॉक ड्रिल की शुरुआत हुई। 11.20 मिनट पर अचानक स्कूलों की आपातकालीन घंटी बजी। छात्रों को भूकंप आने की सूचना दी गई। इसके बाद छात्र डेस्क के नीचे सर ढंककर बैठ गए और डेस्क को कसकर पकड़ लिया। भूकंप थमने के बाद छात्र खुले स्थान पर इकट्ठा हुए। ड्रिल करीब 45 मिनट तक चलता रहा। इस दौरान सभी स्कूलों में डिजास्टर मैनेजमेंट सेल के 108 वालंटीयर और एनडीआरएफ के इतने ही कर्मी मौजूद थे। ड्रिल के दौरान जिलाधिकारी एनपी सिंह स्कूलों में पहुंचे और जायजा लिया।
भूकंप से बचने की दी जानकारी :
मेगा मॉक ड्रिल के दौरान स्कूलों में छात्रों को भूकंप के दौरान खुद का बचाव करने का तरीका बताया गया। साथ ही उन्हें दूसरों की मदद करने के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। साथ ही भूकंप के दौरान क्या-क्या सावधानिया बरती जाएं, इसके बारे में बताया गया।

मॉक ड्रिल के दौरान खामियां सामने आई

 भगवान न करे कि राजधानी पर कभी कोई आपदा आन पड़े, क्योंकि आपदा आ गई तो न जाने कितनी जानें चली जाएंगी। कम से कम, मंगलवार को सरकार की ओर से आयोजित मेगा मॉक ड्रिल में यही भयावह तस्वीर दिखाई दी।

आपदा के समय सरकारी एजेंसियों की तैयारियों का जायजा लेने के लिए आयोजित मॉक ड्रिल में कई खामियां नजर आई। मॉक ड्रिल में शामिल घायल कराहते रहे, लेकिन एम्बुलेंस मौके पर नहीं पहुंची। कुछ घायलों को ऑटो रिक्शा में डालकर अस्पतालों तक ले जाया गया। अस्पतालों में डॉक्टर भी तत्पर नजर नहीं आए।

दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के अध्यक्ष धर्मपाल ने स्वीकार किया कि मॉक ड्रिल के दौरान खामियां सामने आई है। बुधवार को इसकी विस्तृत समीक्षा की जाएगी।
मेगा ड्रिल का प्रचार चाहे जितना किया गया, लेकिन इसका आयोजन प्रभावशाली नहीं रहा। कहीं घायल स्ट्रेचर पर हंस रहे थे, तो कहीं एंबुलेंस में ही बैठे थे। एक-दो जगहों पर मरीजों में घबराहट व विभागों में तत्परता तो दिखी, लेकिन वह इतनी नहीं कि हकीकत जैसी स्थिति पैदा कर सके। क्योंकि घायल मॉक ड्रिल से पहले ही मरहम-पट्टी लगाकर बैठे थे।

हद तो तब हो गई जब इन घायलों को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया गया, वहां डॉक्टरों की टीम ने इन्हें अटेंड तो किया, लेकिन उनके चेहरे पर वह तत्परता नहीं थी, जो बम ब्लास्ट, शॉट सर्किट या अन्य किसी आपदा में घायल मरीजों के इलाज में दिखती है। दिल्ली उच्च न्यायालय के गेट पर हुए ब्लास्ट के वक्त जब राममनोहर लोहिया अस्पताल में एक साथ 70 घायल पहुंचे थे तो अस्पताल में अफरा-तफरी मच गई थी।

नजफगढ़ में मॉक ड्रिल शामिल घायलों को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं पहुंची तो कुछ देर इंतजार के बाद उन्हें ऑटो से राव तुला राम अस्पताल ले जाया गया।

मॉक ड्रिल के लिए तैयारियां पिछले तीन महीने से चल रही थी। कुल 16 जगहों पर वर्कशॉप आयोजित कर 600 डॉक्टरों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया था। साथ ही मेगा मॉक ड्रिल से एक दिन पहले यमुना स्पो‌र्ट्स कांप्लेक्स में अमेरिकी विशेषज्ञों की टीम के साथ बैठक भी आयोजित की गई थी, ताकि अगले वर्ष 15 फरवरी को आयोजित होने जा रही पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की संयुक्त मेगा मॉक ड्रिल से एक कदम आगे निकला जा सके, लेकिन इस मेगा मॉक ड्रिल को बजट खपाने से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। कई जगहों पर इसकी सूचना पहले से लोगों को थी, यही वजह थी कि राजौरी गार्डन में आयोजित मॉक ड्रिल में वॉलेंटियर पहले से मरहम पट्टी लगाकर बैठे थे तो अलीपुर के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बच्चे उछल-कूद मचाते हुए बाहर निकले। मयूर विहार के सीएनजी फीलिंग पंप पर तो लोग समझ ही नहीं पाए कि आखिर हो क्या रहा है।


मियांवाली नगर के ज्वाला पुरी में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की ओर से मॉकड्रिल

मियांवाली नगर के ज्वाला पुरी में जिला प्रशासन एवं जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण डीडीएमए की ओर मॉकड्रिल का आयोजन किया गया। इस दौरान यहां तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों को भूकंप आदि जैसी आपदा के दौरान आने वाली चुनौतियों से निपटने के तरीके बताये और समझाये गये। यहां जिला प्रशासन के अधिकारी एवं डीडीएमए के अधिकारियों व टीम की मौजूदगी रही। यहां आपदा प्रबंधन के सभी कर्मियों ने भूकंप आने पर उत्पन्न विपरीत स्थिति से निपटने, सही समय पर पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाने समेत आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने का अभ्यास किया गया। मॉकड्रिल में जिला राजस्व विभाग, दिल्ली सरकार की ओर से एसडीएम पंजाबी बाग, तहसीलदार नांगलोई, तहसीलदार मुंडका व डीडीएमए पश्चिमी व पश्चिमी दिल्ली प्रोजेक्ट समन्वयक भावना ¨सह मौजूद रही।
अधिकारियों ने बताया कि आपदा के दौरान भगदड़ नहीं मचानी चाहिए, बल्कि धैर्य से काम लेना चाहिए। यहां नाट्य रूप में भूकंप आने की सूचना दी गई, जिसमें सभी को बताया गया कि मियांवाली नगर के ज्वाला पुरी में भूकंप के चलते इमारत जर्जर हो गई है। इसके अलावा एक मकान की छत और दीवार का कुछ हिस्सा गिर गया है। इसमें इमारत की पहली व दूसरी मंजिल को काफी क्षति पहुंची है। इसमें एक व्यक्ति की मौत और छह लोगों के घायल होने की सूचना मिली। ऐसे में सूचना मिलते ही घायलों को कैट्स एंबुलेंस एवं पीसीआर की मदद से नजदीकी अस्पताल में पहुंचाया गया। यहां जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी व कर्मचारियों ने बिना किसी देरी के तेजी से बचाव एवं राहत कार्य शुरू कराया। यह आयोजन डीडीएमए पश्चिमी जिला एवं रिहायशी वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से कराया गया।
इस मौके पर एसडीएम अजित ने बताया कि जून माह में जिले में विभिन्न सार्वजनिक जगहों पर मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाएगा। इसमें लोगों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। वहीं, आपदा प्रबंधन के जिला परियोजना समन्वयक हर्षद ने बताया कि इस अभियान का मकसद यह है कि आपदा की स्थिति में पुलिस, फायर सर्विस, कैट्स एंबुलेंस आदि की सेवा पीड़ितों को समय पर मिल सके, इसका अभ्यास करना है। इस मौके पर पीसीआर कर्मी, यातायात पुलिस, BSES की टीमों ने भी सहयोग किया। वहीं आपदा प्रबंधन की परियोजना अधिकारी मोहित शर्मा ने भूकंप आदि की स्थिति में बचाव के बारे में जानकारी देकर उन्हें जागरूक भी किया।



Friday, June 9, 2017

समानता और स्वतंत्रता का अधिकार

समानता का अधिकार संविधान की प्रमुख गारंटियों में से एक है। यह अनुच्छेद 14-16 में सन्निहित हैं जिसमें सामूहिक रूप से कानून के समक्ष समानता तथा गैर-भेदभाव के सामान्य सिद्धांत शामिल हैं, तथा अनुच्छेद 17-18 जो सामूहिक रूप से सामाजिक समानता के दर्शन को आगे बढ़ाते हैं। अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है, इसके साथ ही भारत की सीमाओं के अंदर सभी व्यक्तियों को कानून का समान संरक्षण प्रदान करता हैइस में कानून के प्राधिकार की अधीनता सबके लिए समान है, साथ ही समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार। उत्तरवर्ती में राज्य वैध प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों का वर्गीकरण कर सकता है, बशर्ते इसके लिए यथोचित आधार मौजूद हो, जिसका अर्थ है कि वर्गीकरण मनमाना न हो, वर्गीकरण किये जाने वाले लोगों में सुगम विभेदन की एक विधि पर आधारित हो, साथ ही वर्गीकरण के द्वारा प्राप्त किए जाने वाले प्रयोजन का तर्कसंगत संबंध होना आवश्यक है।
अनुच्छेद 15 केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। अंशत: या पूर्णत: राज्य के कोष से संचालित सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों या सार्वजनिक रिसोर्ट में निशुल्क प्रवेश के संबंध में यह अधिकार राज्य के साथ-साथ निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी प्रवर्तनीय है। हालांकि, राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है। इस अपवाद का प्रावधान इसलिए किया गया है क्योंकि इसमें वर्णित वर्गो के लोग वंचित माने जाते हैं और उनको विशेष संरक्षण की आवस्यकता है। अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी के भी खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों का सार्वजनिक सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनुश्चित करने के लिए उनके लाभार्थ सकारात्मक कार्रवाई के उपायों के कार्यान्वयन हेतु अपवाद बनाए जाते हैं, साथ ही किसी धार्मिक संस्थान के एक पद को उस धर्म का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के लिए आरक्षित किया जाता है।
अस्पृश्यता की प्रथा को अनुच्छेद 17 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित कर किया गया है, इस उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 संसद द्वारा अधिनियमित किया गया है। अनुच्छेद 18 राज्य को सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टता को छोडक़र किसी को भी कोई पदवी दे्ने से रोकता है तथा कोई भी भारतीय नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई पदवी स्वीकार नहीं कर सकता। इस प्रकार, भारतीय कुलीन उपाधियों और अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई और अभिजात्य उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है। हालांकि, भारत रत्न पुरस्कारों जैसे, भारतरत्न को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस आधार पर मान्य घोषित किया गया है कि ये पुरस्कार मात्र अलंकरण हैं और प्रप्तकर्ता द्वारा पदवी के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता के अधिकार को अनुच्छेद 19-22 में शामिल किया गया है और इन अनुच्छेदों में कुछ प्रतिबंध भी शामिल हैं जिन्हें विशेष परिस्थितियों में राज्य द्वारा व्यक्तिगं स्वतंत्रता पर लागू किया जा सकता है। अनुच्छेद 19 नागरिक अधिकारों के रूप में छ: प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है जो केवल भारतीय नागरिकों को ही उपलब्ध हैं। इनमें शामिल हैं भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, हथियार रखने की स्वतंत्रता, भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रतता, भारत के किसी भी भाग में बसने और निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता। ये सभी स्वतंत्रताएं अनुच्छेद 19 में ही वर्णित कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन होती हैं, दिन्हें राज्य द्वारा उन पर लागू किया जा सकता है। किस स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जाना प्रस्तावित है, इसके आधार पर प्रतिबंधों को लागू करने के आधार बदलते रहते हैं, इनमें शामिल हैं राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, अपराधों को भडक़ाना और मानहानि। आम जनता के हित में किसी व्यापार, उद्योग या सेवा का नागरिकों के अपवर्जन के लिए राष्ट्रीयकरण करने के लिए राज्य को भी सशक्त किया गया है।
अनुच्छेद 19 द्वारा गारंटीशुदा स्वतंत्रताओं की आगे अनुच्छेद 20-22 द्वारा रक्षा की जाती है। इन अनुच्छेदों के विस्तार, विशेष रूप से निर्धारित प्रक्रिया के सिद्धांत के संबंध में, पर संविधान सभा में भारी बहस हुई थी। विशेष रूप से बेनेगल नरसिंह राव ने यह तर्क दिया कि ऐसे प्रावधान को लागू होने से सामाजिक कानूनों में बाधा आएगी तथा व्यवस्था बनाए रखने में प्रक्रियात्मक कठिनाइयां उत्पन्न होंगी, इसलिए इसे पूरी तरह संविधान से बाहर ही रखा जाए। संविधान सभा ने 1948 में अंतत: “निर्धारित प्रक्रिया” शब्दों को हटा दिया और उनके स्थान पर “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया” को शामिल कर लिया। परिणाम के रूप में एक, अनुच्छेद 21, जो विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार होने वाली कार्यवाही को छोड़ कर, जीवन या व्यक्तिगत संवतंत्रता में राज्य के अतिक्रमण से बचाता है, के अर्थ को 1978 तक कार्यकारी कार्यवाही तक सीमित समझा गया था। हालांकि, 1978 में, मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के संरक्षण को विधाई कार्यवाही तक बढ़ाते हुए निर्णय दिया कि किसी प्रक्रिया को निर्धारित करने वाला कानून उचित, निष्पक्ष और तर्कसंगत होना चाहिए, और अनुच्छेद 21 में निर्धारित प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से पढ़ा। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “जीवन” का अर्थ मात्र एक “जीव के अस्तित्व” से कहीं अधिक है; इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार तथा वे सब पहलू जो जीवन को “अर्थपूर्ण, पूर्ण तथा जीने योग्य” बनाते हैं, शामिल हैं। इस के बाद की न्यायिक व्याख्याओं ने अनुच्छेद 21 के अंदर अनेक अधिकारों को शामिल करते हुए इसकी सीमा का विस्तार किया है जिनमें शामिल हैं आजीविका, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य, अदालतों में तेवरित सुनवाई तथा कैद में मानवीय व्यवहार से संबंधित अधिकार। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 के 86वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21ए में मौलिक अधिकार बनाया गया है। अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण प्रदान करता है, जिनमें शामिल हैं पूर्वव्यापी कानून व दोहरे दंड के विरुद्ध अधिकार तथा आत्म-दोषारोपण से स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद 22 गिरफ्तार हुए और हिरासत में लिए गए लोगों को विशेष अधिकार प्रदान करता है, विशेष रूप से गिरफ्तारी के आधार सूचित किए जाने, अपनी पसंद के एक वकील से सलाह करने, गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर एक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने और मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना उस अवधि से अधिक हिरासत में न रखे जाने का अधिकार। संविधान राज्य को भी अनुच्छेद 22 में उपलब्ध रक्षक उपायों के अधीन, निवारक निरोध के लिए कानून बनाने के लिए अधिकृत करता है। निवारक निरोध से संबंधित प्रावधानों पर संशयवाद तथा आशंकाओं के साथ चर्चा करने के बाद संविधान सभा ने कुछ संशोधनों के साथ 1949 में अनिच्छा के साथ अनुमोदन किया था। अनुच्छेद 22 में प्रावधान है कि जब एक व्यक्ति को निवारक निरोध के किसी भी कानून के तहत हिरासत में लिया गया है, ऐसे व्यक्ति को राज्य केवल तीन महीने के लिए परीक्षण के बिना गिरफ्तार कर सकता है, इससे लंबी अवधि के लिए किसी भी निरोध के लिए एक सलाहकार बोर्ड द्वारा अधिकृत किया जाना आवश्यक है। हिरासत में लिए गए व्यक्ति को भी अधिकार है कि उसे हिरासत के आधार के बारे में सूचित किया जाएगा.

Thursday, June 8, 2017

कहानी

नमिता एक हंसमुख और खुशमिजाज लड़की थी. उसके चेहरे की सौम्‍यता, स्‍निग्‍धता और लावण्‍य किसी का भी मन मोह लेते थे. उसके गुलाबी होंठ सदैव मीठी मुस्‍कुराहट के दरिया में छोटी नाव की तरह हिचकोले खाते रहते थे. आंखों की पुतलियां सितारों की तरह नाचती रहती थीं. उसके चेहरे और बातों में ऐसा आकर्षण था, जो देखने वाले को बरबस अपनी तरफ खींच लेता था परन्‍तु पिछले कुछ दिनों से नमिता के चेहरे का लावण्‍य धुंधला पड़ता जा रहा था. होंठों की मुस्‍कुराहट सिकुड़कर मुरझाए फूल की तरह सिमट गयी थी. आंखों की पुतलियों ने नाचना बन्‍द कर दिया था. आंखों के नीचे स्‍याह घेरे पड़ने लगे थे पुतलियां जैसे वीराने में कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करती रहती थीं, परन्‍तु नमिता को वह नहीं प्राप्‍त हो रहा था, जो वह ढूंढ़ना चाहती थी. बदले में वह अपने पास का बहुत कुछ खोती जा रही थी. वह स्‍वयं नहीं समझ पा रही थी कि वह अपने जीवन की कौन सी अमूल्‍य वस्‍तु खोती जा रही थी. सब कुछ उसके हाथ से फिसलता जा रहा था. कुछ भी उसके वश में नहीं रहा था उसका सुख-चैन उससे छिन गया था. रातों की नींद उड़ गई थी. दिन उसके लिए दहशत की चादर फैलाये हुए आता और उसे अपने साए में समेट लेता. अगर आप समझ रहे हों कि नमिता किसी के प्‍यार में गिरफ्‍तार होकर अपना सुख-चैन खोती जा रही थी, तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं. नमिता के दुःख का कारण क्‍या था ? यह वह किसी को बता नहीं पा रही थी...न अपने किसी परिजन को, न आत्‍मीय को, न सहकर्मियों को. सारा दुःख वह अकेले झेल रही थी और बबूल से गिरे कांटे की तरह सूखती जा रही थी. फिर भी उसके चेहरे का रेगिस्‍तान की तरह सूखना और फूलों जैसी कोमलता का मुरझाना किसी की निगाहों से छिपा नहीं था. लोग पहले काना-फूसी में उसके बारे में बात करते रहे, फिर खुलकर बोलने लगे. सीधे उसी से पूछते, ‘‘क्‍या हुआ है नमिता तुम्‍हारे साथ जो तुम ग्रहण लगे चांद की भांति कांतिविहीन होती जा रही हो?''

वह पूछने वाले की तरफ देखती भी नहीं. सिर झुकाकर एक फीकी, निर्जीव मुस्‍कुराहट के साथ बस इतना कहती, ‘‘नहीं, कुछ नहीं...'' शब्‍द जैसे उसका साथ छोड़ देते. आजकल वह बातें भी कम करती थी. लोग जी मसोसकर रह जाते. इतनी सौम्‍य और सुन्‍दर लड़की के साथ क्‍या हो गया था ? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

इस तरह के हालात कब तक चल सकते थे ? नमिता किस-किस से मुंह छुपाती? अपरिचितों से मुंह चुरा सकती थी, उनकी नजरों का सामना भी कर सकती थी, उनकी बातों के तीरों को नजर-अन्‍दाज कर सकती थी, परन्‍तु अपने घर-परिवार के सदस्‍यों, परिचितों और सहकर्मियों की निगाहों से कब तक बच सकती थी. उनकी बातों का कब तक जवाब नहीं देती? आखिर टूट ही गई एक दिन...सबके सामने नहीं. आफिस की एक महिला सहकर्मी थी, उम्र में उससे कुछ वर्ष बड़ी, जीवन का अनुभव भी था और आफिस में वह नमिता से कई वर्ष श्रेष्‍ठ थी. एक दिन एकान्‍त में जब उस महिला ने नमिता से प्‍यार भरी वाणी में आश्‍वासन देते हुए पूछा, तो नमिता रोने लगी. बांध टूट चुका था. फालतू का पानी बह जाने के बाद जब नमिता संयत हुई तो उसने धीरे-धीरे अपनी परेशानी का कारण बयान कर दिया. सुनकर प्रीति वाधवा हैरान रह गई थींनमिता स्‍टेनोग्राफर थी और कार्यालय प्रमुख भूषण राज चड्‌ढा के साथ संबद्ध थी. चडढ्‌ ा अधेड़ उम्र का सुखी परिवार वाला व्‍यक्‍ति था. आफिस में उसकी अपनी पी.ए. थी, परन्‍तु डिक्‍टेशन और टाइपिंग का काम नमिता से ही करवाता था. काम कम करवाता था, सामने बिठाकर बातें ज्‍यादा करता था. उसे मुस्‍कुराती नजरों से देखा करता था. पहले वह भी मुस्‍कुराती थी और मुस्‍कुराकर ही उसकी बातों का जवाब भी देती थी. परन्‍तु धीरे-धीरे नमिता की समझ में आ गया कि चड्‌ढा साहब की नजरों का अर्थ कुछ दूसरा था, तथा वह अपनी बातों से उसके दिलो-दिमाग में एक विशेष सन्‍देश भेजना चाहता था, तो वह सतर्क हो गयी. अब बदले में वह मुस्‍कुराहट नहीं फेंकती और चड्‌ढा की बातों पर मौन होकर नीचे देखने लगती. जब वह कोई द्विअर्थी बात कहता, तो वह अन्‍दर से डरकर सिमट जाती, परन्‍तु बाहर से अपने को संभाले रहती कि एकान्‍त सूने कमरे में कोई अनहोनी न हो जाए. चड्ढा‌  नमिता की खामोशी, शर्म और झिझक को उसकी स्‍वीकृ‍ति समझ बैठाजवान लड़के लड़कियों को पटाने के लिए जो तरीका अपनाते हैं, वह प्रौढ़ या अधेड़ उम्र के व्‍यक्‍तियों के तरीकों से पूरी तरह भिन्‍न होता है. जवान लड़के-लड़कियां चूंकि साथ-साथ पढ़ते हैं, साथ-साथ घूमते हैं, स्‍वछन्‍द व्‍यवहार करते हैं; अतः स्‍वतः ही उनके मन में एक-दूसरे के प्रति कोमल भाव जाग जाते हैं, और वह एक दूसरे पर आसक्‍त हो जाते हैं. कुछ लड़के ऐसे भी होते हैं, जो लड़कियों को पटाने के लिए लच्‍छेदार बातों, हाजिरजवाबी, बुद्धिमत्ता और अपने बाप की सम्‍पन्‍नता तथा वैभव का सहारा लेते हैं. ऐसा वह तब करते हैं, जब मनचाही लड़की से मिलने के लिए वह पूरी तरह से स्‍वतंत्र नहीं होते हैं. उनके पास सीमित समय होता है और अनेक बन्‍धनों को तोड़कर उन्‍हें लड़की के घेरे तक पहुंचने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. दूसरी तरफ प्रौढ़ तथा अधेड़ उम्र के व्‍यक्‍ति लड़कियां पटाने के लिए अलग तरीका अपनाते हैं. वह इस कार्य के लिए अपने कार्यक्षेत्र का और अपने अधीनस्‍थ काम करने वाली लड़की का चुनाव करते हैं. यह शिकार आसान होता है. पुरुष सबसे पहले अपने अधीनस्‍थ काम करने वाली लड़की को यह एहसास दिलाता है कि वह एक वट वृ‍क्ष है तथा उसके नीचे लड़की पूरी तरह सुरक्षित और निरापद है. अपना थोड़ा सा प्‍यार देकर वह अपने परिवार की सुख-शान्‍ति, जीवन भर की सुरक्षा, नौकरी की गारन्‍टी और पदोन्‍नतियां प्राप्‍त कर सकती है. कई लड़कियां इस झांसे में आ जाती हैं और कई अपने बास की चालाकी भरी मंशा भांप जाती हैं. फिर वह अपना उपयुक्‍त बचाव करती हैंनमिता को अपने बास की कुत्‍सित मंशा का आभास हो चुका था. वह यह तो नहीं जानती थी कि चड्‌ढा के अन्‍तर्गत कार्य करते हुये वह कितनी सुरक्षित और निरापद है. वह जीवन का कौन सा सुख उसे देगा या उसके घर परिवार के लिए क्‍या करेगा; परन्‍तु इतना वह अवश्‍य जानती थी कि केन्‍द्र सरकार के कार्यालय की यह पक्‍की नौकरी उसके लिए अति आवश्‍यक थी. उसका तीन साल का प्रोबेशन था दो साल पूरे हो चुके थे. एक साल बाद उसे कन्‍फर्मेशन लेटर प्राप्‍त हो जाएगा, तब वह अपनी पक्‍की नौकरी के प्रति आश्‍वस्‍त हो सकेगीनमिता आम भारतीय लड़कियों की तरह साधारण मध्‍यमवर्गीय परिवार की लड़की थी. मां-बाप के अलावा घर में एक छोटा भाई और बहन थी. बाप एक प्राइवेट फर्म में एकाउन्‍टेंट था. सीमित आमदनी के बावजूद बाप ने नमिता को पर्याप्‍त शिक्षा दी. घर में बड़ी होने के नाते मां-बाप की आंखों का तारा तो थी ही, साथ ही साथ उम्‍मीद का चिराग भी कि शिक्षा पूरी करते ही कोई नौकरी मिल जाएगी तो घर की आर्थिक स्‍थिति में थोड़ा सुधार आ जाएगा. छोटे भाई बहन की पढ़ाई अच्‍छे ढंग से तथा सुचारू रूप से चलती रहेगी. बच्‍चे ही तो मां-बाप की वैशाखी बनते हैंनमिता ने अपने मां-बाप को निराश नहीं किया. बी.ए. में दाखिला लेने के साथ-साथ वह एक प्राइवेट इन्‍स्‍टीट्‌यूट से आशुलिपि का कोर्स भी पूरा करती रहीजैसे ही वह कोर्स पूरा हुआ, उसने एस.एस.सी. की परीक्षा दी और आज अपनी मेहनत की बदौलत सरकारी नौकरी कर रही थी नमिता के मौन ने चडढ्‌ ा को साहस प्रदान किया. उसने और ज्‍यादा चारा फेंका, ‘‘अगर तुम चाहोगी तो तुम्‍हारे भाई-बहन पढ़-लिखकर अच्‍छी सर्विस में आ जाएंगे. मैं उन्‍हें आगे बढ़ने में मदद करूंगा.'' नमिता ने निमिष मात्र के लिए अपनी निगाहें उठाईं और चड्‌ढा के लाल-लाल फूले गालों वाले चेहरे पर टिका दीं. उसकी आंखों में ब्रह्माण्‍ड का सारा प्‍यार नमिता के लिए उमड़ रहा था, परन्‍तु इस प्‍यार में उसे चड्ढा‌  के खतरनाक और कुत्‍सित इरादों का भी पता चल रहा था. ऐसे इरादे, जो एक खूंखार भेड़िये की आंखों में भेड़ या बकरी को देखकर आते हैं.
‘‘हां, सच! तुम चिन्‍ता न करो, मैं तुम्‍हारे भाई-बहनों को गाइड करूंगा कि उन्‍हें प्रोफेशनल कोर्स करने चाहिए या सामान्‍य कोर्स करके प्रतियोगी परीक्षा के माध्‍यम से लोक सेवा में आना चाहिए. मैंने कई लोगों को गाइड किया है और आज कई लड़के ऊंची सरकारी नौकरी में पदस्‍थ हैं और मेरा आभार मानते हैं.'' परन्‍तु नमिता के हृदय में चड्ढा‌  के लिए ऐसे किसी भाव का संचार नहीं हुआ कि वह अपने मन को उसके साथ जोड़ सकती. उसके मन के किसी कोने में चड्ढा‌  के प्रति प्रेम-भाव जागृ‍त नहीं हुआ. उसके सामने बैठकर वह घुटन का अनुभव करती थी. वह निःस्‍पश्‍ह भाव से बैठी रहती थी...मजबूर थी. उठकर भाग नहीं सकती थी काम करवाने के बहाने चड्ढा‌  उसे देर तक बिठाए रखता. उलूल-जलूल बातें करके उसे बहलाने की कोशिश करता. उसकी बातों से नमिता के हृदय में न तो किसी प्रकार की मीठी अनुभूति होती थी, न उसके मन में किसी प्रेरणा का संचार; परन्‍तु चड्ढा को लगता था कि उसकी वाणी में ऐसा सम्‍मोहन है कि नमिता का जवान हृदय उसके अधेड़ हृदय की तरफ खिंचा चला आ रहा था. वह कल्‍पना में देखता कि जब दो हृदय आपस में टकराएंगे, तो एक भयानक विस्‍फोट होगा और...और एक आग लगेगी, एक ऐसी आग जो उन दोनों के तन-बदन को एक साथ समेट लेगी. उन दोनों के मिलन से वह भयंकर आग अपने आप बुझ जाएगी. चड्‌ढा विस्‍फोट होने के पहले ही जलने लगा था.  नमिता के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी थी. न तो वह चड्ढा‌ को खुलकर मना कर सकती थी, न अपने मन की व्‍यथा किसी से कह सकती थी. खामख्‍वाह बदनामी होती...परन्‍तु उसकी चुप्‍पी का घातक परिणाम हुआ. कहते हैं कि चुप रहने से कई गंभीर दुर्घटनाएं टल जाती हैं, परन्‍तु प्‍यार और वासना के मामले में चुप्‍पी खतरनाक मोड़ पर आकर खत्‍म होती है. चड्‌ढा की बातों का जब नमिता कोई जवाब न देती तो वह बोलता, ‘‘अच्‍छा तुम बोर हो रही हो. एक काम करो, चलो, एक डी.ओ. का डिक्‍टेशन ही ले लो.''
नमिता जब तक अपना पैड और कलम संभालती, वह अपनी कुर्सी से खड़ा होकर मेज की दाहिनी तरफ आ जाता और कुछ सोचने का बहाना करते हुए नमिता की कुर्सी के बाएं सिरे पर आकर खड़ा हो जाता. फिर दाहिनी तरफ नमिता के बाएं कन्धे पर लगभग झुकते हुए कहता, ‘‘हां लिखो...माई डियर...'' फिर एक पल की चुप्‍पी... चुप्‍पी के बाद... ‘‘नहीं यह छोड़ो, लिखो डियर श्री...'' फिर चड्‌ढा की सुई लगभग अटक जाती और वह माई डियर या डियर श्री से आगे नहीं बढ़ पाता. यह शायद नमिता के सौन्‍दर्य या उसके सुगठित शरीर का कमाल था कि पल भर में ही चड्‌ढा की सांस फूलने लगती और वह नमिता की चिकनी पीठ को लालसा भरी निगाहों से ताकते हुए लंबी-लंबी सांसें लेने लगता. जब वह ज्‍यादा असंयत हो जाता तो कसमसाते हुए नमिता के सिर पर हाथ रखकर कहता, ‘‘हां, क्‍या लिखा...?'' नमिता के शरीर में एक लिजलिजी लहर समा जाती. चड्‌ढा का हाथ धीरे-धीरे नमिता के नर्म बालों को सहलाता. वह ऐसा जाहिर करता जैसे पितृ‍ भाव से किसी नादान बच्‍चे को प्‍यार-दुलार कर रहा हो, परन्‍तु यह उसका मन और नमिता का हृदय ही जानता था कि चड्‌ढा के मोटे खुरदरे हाथों से किस प्रकार के भाव प्रवाहित होकर नमिता के शरीर की शिराओं में एक घृ‍णा का विष घोल रहे हैं. नौकरी नमिता की मजबूरी थी, तो अधिकार और पद चड्ढा‌  की उदद्‌ण्‍डता और धृ‍ष्‍टता की पराकाष्‍ठा...दोनों का कोई मेल नहीं था, परन्‍तु अधिकार हमेशा मजबूरी पर हावी रहते हैं. इसके चलते भ्रष्‍टाचार, अनाचार और व्‍यभिचार जैसे अपराध समाज में पनपते हैं. मजबूरी को जब असीमित मात्रा में दबाया-कुचला जाता है तो जलजले के साथ-साथ भयानक तूफान आता है, जिसमें बहुत कुछ विनाशकारी घटित होता है. विनाश अच्‍छे-बुरे का कभी खयाल नहीं करता. मजबूरी आदमी को अकल्‍पित और अपरिमित सीमा तक सहनशील बना देती है. नमिता के साथ भी यही हो रहा था. वह अपने बास की ज्‍यादतियों का शिकार हो रही थी, परन्‍तु उनका विरोध नहीं कर पा रही थी, न शब्‍दों से न हरकतों से..नतीजा ये हुआ कि चड्ढा‌  के अनुभवी हाथ अब नमिता के सिर से होते हुए उसकी गर्दन को गुदगुदाने लगे थे और कभी-कभी उसके गालों तक पहुंच जाते थे. फिर कई बार उसकी पीठ को सहलाते, जैसे कुछ ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे हों. उसकी ब्रेसरी के ऊपर हाथ रोककर उसके हुक को टटोलते हुए ऊपर से ही खोलने का प्रयास करते, परन्‍तु नमिता कुछ इस प्रकार सिकुड़ जाती कि चड्ढा‌  अपने प्रयास में विफल होकर कुर्सी पर जाकर बैठ जाता और हताश स्‍वर में कहता, ‘‘निम्‍मी...!'' आजकल वह प्‍यार से उसे निम्‍मी कहने लगा था, ‘‘तुम कुछ हेल्‍प क्‍यों नहीं करती? तुम समझ रही हो न...! मैं क्‍या कहना चाहता हूं?'' वह अपनी आंखों में आशाओं के असंख्‍य दीपक जलाकर उसकी तरफ देखता, परन्‍तु वह झटके से उठकर खड़ी हो जाती और सर्र से बाहर निकल जातीनमिता नासमझ नहीं थी, परन्‍तु चड्ढा‌ अपनी हजार कोशिशों के बाद भी उसके मन में कोई कोमल भाव नहीं जगा सका. नमिता उसकी बेतुकी और अर्थहीन बातों को सुनकर भी अनसुना कर देती, उसके स्‍पर्श को बस की भीड़ में हुई धक्‍का-मुक्‍की समझकर भुलाने का प्रयास करती, परन्‍तु बस में होने वाले शारीरिक स्‍पर्श तथा चड्ढा‌  के हाथों के सायास स्‍पर्श में जमीन आसमान का अन्‍तर था. वह चाहकर भी उसके स्‍पर्शों के लिजलिजेपन को भुला नहीं पाती थी और न इस संबन्‍ध को स्‍वीकार करने का मन बना पा रही थी रात-दिन वह विचारों के सागर में गोते लगाती रहती, परन्‍तु कोई किनारा उसे नजर नहीं आ रहा था. इधर घर में उसकी शादी की बातें भी चलने लगी थीं. इस स्‍थिति में अगर वह किसी गलत रास्‍ते पर चल पड़ी या किसी ने जबरदस्‍ती उसके दामन में दाग लगा दिया तो क्‍या वह अपने आपको माफ कर सकेगी. क्‍या वह अपने मन को संभाल कर रख पाएगी? एक छोटी सी गलती उसके पूरे जीवन को तबाह कर सकती थी. किस मुसीबत में आकर वह फंस गई थी ? क्‍या करे, क्‍या न करे? वह रात-दिन सोचती रहती. जब से चड्‌ढा ने उसकी पीठ को सहलाना शुरू किया था और उसके गालों को उंगलियों के बीच फंसाकर कभी धीरे से, तो कभी जोर से चिकोटी काट लेता, तब से वह और ज्‍यादा डरने लगी थी. चड्‌ढा अपनी समझ में बहुत कोमलता से उसके गालों पर चिकोटियां काटता था, परन्‍तु यह तो नमिता का हृदय ही जानता था कि उन चिकोटियों में कितनी पीड़ा छिपी हुई थी. वह किस प्रकार इस पीड़ा को सहन करती थी, उसके सिवा और कौन जान सकता था चड्‌ढा जब इस तरह की हरकतें करता तो वह अपने शरीर को मेज पर टिका देती कि कहीं चड्‌ढा के हाथ उसके सीने की गोलाइयों को न लपक लें. वह हर संभव प्रयास करती कि चडढा उसके साथ कोई गलत हरकत न करने पाए, परन्‍तु शिकारी भेड़िये के पंजे अक्‍सर उसके कोमल बदन को खरोंच देते.
एक दिन तो हद ‌ हो गयी. चड्‌ढा ने उसके दोनों गालों पर हाथ फिराते हुए आगे की तरफ से ठोढ़ी और गर्दन को सहलाना शुरू कर दिया, फिर धीरे-धीरे हाथों को आगे बढ़ाते हुए उसके गालों की तरफ झुक आया. जब उसकी गर्म सांसें नमिता के बाएं गाल से टकराईं तो वह चौंकी, झटके से बाईं तरफ मुड़ी, तो चड्‌ढा का मुंह सीधे उसके होंठों से जा लगा. उसने भूखे भेड़िये की तरह नमिता के दोनों होंठ अपने मुंह में भर लिए और चुभलाने लगा. इसी हड़बड़ी में उसके हाथ नमिता के सीने के दोनों उभारों को मसलने लगे. पल भर के लिए वह हतप्रभ सी रह गयी. जब उसकी समझ में आया तो उसने झटका देकर अपने आपको चड्ढा‌  के चंगुल से छुड़ाया और धक्‍का देकर उसे पीछे किया. चड्‌ढा के लिए यह धक्‍का अचानक और अनायास था, अतः वह पीछे हटते हुए मेज से टकराया और गिरते-गिरते बचानमिता कमरे से बाहर हो चुकी थी. अपनी सांसें संयत करने में उसे बहुत देर लगी. उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया था. उसका दिल और दिमाग दोनों सुन्‍न से हो गए थे. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या करे वह? उधर चडढ्‌ ा अपनी सांसों को संयत करते हुए मन ही मन खुश हो रहा था कि एक मंजिल उसने हासिल कर ली थी, अब अंतिम मंजिल हासिल करने में कितनी देर लग सकती थी नमिता के पास अब दो ही रास्‍ते बचे थे - या तो वह नौकरी छोड़ देती या चड्‌ढा के साथ समझौता करके उसके साथ नाजायज रिश्‍ता बना लेती. पहला रास्‍ता आसान नहीं था, और दूसरा रास्‍ता अपनाने से न केवल बदनामी होती; बल्‍कि उसका भावी जीवन भी तबाह हो सकता था. इस रिश्‍ते का असर उसकी मानसिक स्‍थिति पर तो पड़ता ही, भविष्‍य में उसका दाम्‍पत्‍य और पारिवारिक जीवन भी नष्‍ट हो सकता था. जो रिश्‍ता समाज को स्‍वीकार्य नहीं था, उस रिश्‍ते के साथ जुड़कर वह समाज को किस तरह अपना मुंह दिखलाती. ऐसे रिश्‍तों से कभी भी मनुष्‍य सुखी नहीं रहता. द्विविधा, संशय और अनिर्णय की स्‍थिति किसी भी व्‍यक्‍ति की मानसिक सुख-शांति छीन लेती है. इसका असर उसके तन-बदन पर पड़ने लगता है. यही स्‍थिति नमिता की भी थी. नौकरी करते हुए वह चड्ढा की ज्‍यादतियों और बेजा हरकतों से अपने को किसी भी प्रकार नहीं बचा सकती थी. दूरी बनाकर भी कितना रखती. वह उसका ही नहीं, पूरे कार्यालय का बास था. नमिता ने काफी सोच-समझकर एक निर्णय लिया. अब जब भी बास उसे अपने कमरे में बुलाता, वह जान-बूझकर देरी से जाती. बार-बार कहने के बावजूद भी कुर्सी पर नहीं बैठती, बल्‍कि खड़ी ही रहती; ताकि जैसे ही बास अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो और उसकी तरफ बढ़े, वह दरवाजे की तरफ सरक जाए और वह नमिता को पकड़ न सके. वह हरदम चौकन्‍नी रहती. अब वह सिर नीचा करके भी खड़ी नहीं होती थी, बल्‍कि चौकन्‍नी आंखों से अपनी पलकें इधर-उधर घुमाती रहती. नमिता की इन सावधानियों से भूषण राज चड्ढा‌  नमिता के अन्‍तर्मन को समझ गया. वह चालाक भेड़िया था और अपने जीवन में तमाम भेड़ों को अपना शिकार बना चुका था चड्‌ढा ने अपना पैंतरा बदला, अब वह नमिता को किसी सेक्‍शन से कोई फाइल लेकर आने के लिए कहता. वह फाइल को लेकर आती तो कहता, ‘‘देखो इसमें एक पत्र लगा होगा, पिछले महीने हमने मुंबई आफिस से कुछ जानकारी मांगी थी उसका जवाब अभी तक नहीं आया है. एक रिमाइन्‍डर बनाकर लाओ, बना लोगी?'' वह थोड़ा तेज आवाज में कहता, जैसे धमकी दे रहा हो; ‘देख लेना, नहीं बनाकर लाई तो तुम्‍हारा क्‍या हश्र होता है?' नमिता जानती थी कि यह काम संबन्‍धित विभाग के क्‍लर्क का था, उस विभाग के मुख्‍य लिपिक और कार्यालय अधीक्षक का था. नमिता का किसी भी दृ‍ष्‍टिकोण से उस विभाग या उसकी किसी फाइल से संबन्‍ध नहीं था, परन्‍तु चड्‌ढा जान बूझकर उसे तंग करने के यह काम सौंप रहा था ; ताकि काम न कर पाने के लिए वह उसे डांट-डपट सके. वह चड्ढा की चाल समझ रही थी, अतः उसने मना भी नहीं किया और ‘‘मैं कर लूंगी सर!'' कहती हुई बाहर निकल गयीचड्‌ढा पीछे से अपनी कुटिल मुस्‍कान के साथ नमिता के पृ‍ष्‍ठ भाग को जिन्‍दा निगल जाने वाले भाव से देख रहा था. मन ही मन वह सोच रहा था, ‘कहां तक उड़ोगी मुझसे? पंख काटकर रख दूंगा. घोंसला तो इसी वृ‍क्ष पर है तुम्‍हारा! कभी न कभी फन्‍दे में आओगी ही. शिकारी बाज से आज तक कोई चिड़िया बच पाई है!' नमिता ने धैर्य से काम लिया. वह संबन्‍धित अनुभाग के अधीक्षक के पास गई, अपनी समस्‍या बताई. कार्यालय अधीक्षक समझदार था. उसने नमिता का रिमाइन्‍डर तैयार करवा दिया. वह खुशी-खुशी फाइल के साथ रिमाइन्‍डर लेकर चड्ढा के चेम्‍बर में घुसी. वह किसी फाइल पर झुका हुआ था, चश्‍मा नाक पर लटकाकर उसने आंखें उठाईं और त्‍योरियां चढ़ाकर पूछा, ‘‘हूं, तो रिमाइन्‍डर बन गया?''

‘‘जी सर! देख लीजिए,'' वह आत्‍मविश्‍वास से बोली. उसकी अंग्रेजी और टाइपिंग दोनों अच्‍छी थीं. तत्‍थ्‍यात्‍मक गलतियां हो नहीं सकती थीं, क्‍योंकि कार्यालय अधीक्षक ने स्‍वयं मदद की थी. चडढ्‌ ा ने सरसरी तौर पर पत्र को देखा और घुड़ककर बोला, ‘‘तो ऐसे बनाया जाता है रिमाइन्‍डर? तुम्‍हें कोई अकल भी है. ये देखो, ये फीगर गलत हैं. ये कालम सही नहीं बना है. इसका प्रेजेन्‍टेशन सही नहीं है, और यह कौन से फान्‍ट में टाइप किया है. जाओ, दुबारा से बना कर लाओ, वरना समझ लो, अभी प्रोबेशन में हो. मन लगाकर काम करो, वरना जिन्‍दगी भर इसी ग्रेड में पड़ी रहोगी. कभी प्रमोशन नहीं मिलेगा.'' नमिता कुछ देर तो सहमी खड़ी रही. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ड्राफ्‍ट में क्‍या गलती थी. कार्यालय अधीक्षक अनुभवी थे. उन्‍होंने खुद सारे फीगर्स चेक किये थे. नमिता ने स्‍वयं टाइप किया था. उसमें कोई गलती नहीं थी. वह लगभग रुआंसी हो गई. दो साल तक चड्‌ढा ने भले उससे एक पैसे का काम नहीं लिया था, परन्‍तु बातें बहुत मीठी की थीं. अब अचानक उसके व्‍यवहार में आए इस परिवर्तन से नमिता स्‍तब्‍ध थी. इस परिवर्तन का कारण उसे पता था, परन्‍तु वह हैरान इस बात से नहीं थी. वह हैरान इस बात पर थी कि मनुष्‍य अपने स्‍वार्थ के लिए किस कदर तक मीठा और विनम्र हो सकता है, परन्‍तु जब उसकी स्‍वार्थपूर्ति नहीं होती है तो वह किस हद तक नीचता पर उतर सकता है और दूसरे व्‍यक्‍ति को परेशान करने के हथकण्‍डे अपना सकता है. आदमी समय-समय पर न जाने कितने रूप धरता है? यह सारे रूप वह अपने स्‍वार्थ और परिस्‍थिति के अनुरूप बदलता रहता है. अब यह रोज का नियम बन गया था. चड्‌ढा उसे रोज कोई न कोई जटिल काम बता देता. वह सही ढंग से काम कर भी देती, तब भी उसके काम में नुक्‍श निकालता, जोर-जोर से सबके सामने उसे डांटता, भद्दी और गंदी बातों से उसको जलील करता. कई बार नमिता रो पड़ती, परन्‍तु चड्‌ढा जैसे इस बात पर तुला हुआ था कि ऐन-केन प्रकारेण नमिता के सौन्‍दर्य और अथाह यौवन का रसपान उसे करना ही था. घी अगर सीधी उंगली से नहीं निकल रहा था, तो टेढ़ी उंगली से निकलेगा ही. वह अगर मान जाती तो आज ऐसा दिन क्‍यों आता. चड्‌ढा अपने मन की कर लेता तो नमिता को इस तरह दुःख के सागर में गोते क्‍यों लगाने पड़ते? क्‍यों वह अपने फूल से कोमल तन को झुलसाती धूप में तपाती और सबके सामने जलील होती? परन्‍तु नमिता चड्‌ढा की तरह समझदार नहीं थी.
यह एक चूहे बिल्‍ली की लड़ाई थी. भेड़िये और भेड़ के बीच जीवन और मश्‍त्‍यु का प्रश्‍न था. भेड़िया चालाक था, उसके पास शक्‍ति और अधिकार थे. इनके मद में वह चूर था, परन्‍तु भेड़ ने भी तय कर लिया था कि यथा शक्‍ति, यथा युक्‍ति और यथा संभव वह अपना बचाव करेगी. भेड़िये के खूंखार पंजों और दांतों के बीच में फंसकर अपना जीवन बर्बाद नहीं करेगी. इसी अर्न्‍तद्वन्‍द्व में वह फंसी थी और अपने सौन्‍दर्य रूपी फूलों की पंखुडियों को दिनोदिन सुखाती जा रही थी.
‘‘तो ये है तुम्‍हारी परेशानी का कारण!'' प्रीति ने लंबी निःश्‍वास के साथ कहा, ‘‘समस्‍या जटिल है...तो क्‍या सोचा है तुमने? क्‍या तुम समझती हो इस तरह की लड़ाई से तुम स्‍वयं को बचा पाओगी? असंभव है. मैंने इस दफ्‍तर में लगभग दस साल गुजारे हैं. मैं उसकी एक-एक हरकत से वाकिफ हूं. मैं जब यहां आई थी, तब शादी-शुदा थी. चड्ढा‌  केवल कुंआरी लड़कियों पर नजर डालता है. दस सालों में मैंने बहुत कुछ देखा है...कितनी लड़कियों को मैंने यही पर परिस्‍थितियों से समझौता करते हुए देखा है, कितनी तो जबर्दस्‍ती उसकी हवस का शिकार हुई हैं. जो नौकरी छोड़कर चली गईं, उनकी बात अलग थी. वह बच गईं या उनको किसी दूसरी जगह ऐसे ही किसी भेड़िये का सामना करना पड़ा था, कह नहीं सकती.''
‘‘मेरे लिए नौकरी और आत्‍मसम्‍मान दोनों ही जरूरी हैं. मैं दोनों में से किसी को खोना नहीं चाहती. नौकरी जाने से मेरे मां-बाप, भाई और बहन के जीवन पर असर पड़ेगा. आत्‍म-सम्‍मान खो दिया, तो फिर मेरे जीने का क्‍या मकसद...? फिर तो नौकरी और आत्‍मसम्‍मान दोनों त्‍यागकर वेश्‍यावश्‍त्ति ही अपना लूं. उसमें ज्‍यादा कमा सकती हूं. सुखी और स्‍वछन्‍द भी रहूंगी.'' नमिता के स्‍वर में हताशा टपक रही थी.
‘‘छी, ऐसी बात क्‍यां सोचती हो?'' प्रीति ने उसके हाथ को था मते हुए कहा, ‘‘इस तरह निराश होने से काम नहीं चलेगा. क्‍या तुम किसी लड़के को प्‍यार करती हो?'' नमिता ने चौंकती नजरों से प्रीति को देखा. उसके इस अचानक प्रश्‍न का मतलब नहीं समझी. फिर सिर झुकाकर बोली ‘‘उस हद तक नहीं कि उससे शादी कर लूं. कालेज में इस तरह के प्‍यार हो जाते हैं, जिनका कोई गंभीर अर्थ नहीं होता. बस एक दूसरे के प्रति आकर्षण होता है. ऐसा ही पहले कुछ था...दो एक लड़कों के साथ, परन्‍तु अब नहीं, लेकिन आपने क्‍यों पूछा?''
‘‘यही कि शिद्दत से किसी को प्‍यार करने वाली लड़की के कदम जल्‍दी किसी और राह पर नहीं चलते. मैं ऐसा समझ रही थी, शायद तुम अपने प्‍यार की खातिर चड्‌ढा के मन-मुताबिक नरम-दिल नहीं हो पा रही हो, वरना रुपये-पैसे के साथ-साथ जवानी का मजा कौन लड़की नहीं उठाना चाहती.'' नमिता के सीने पर जैसे किसी ने ठूंसा मार दिया हो, वह कराहती हुई बोली, ‘‘तो क्‍या मैं चड्ढा की जांघों के नीचे लेट जाती. क्‍या किसी को प्‍यार न करने वाली लड़की इज्‍जतदार नहीं होती और वह अपना सतीत्‍व जिस-तिस के साथ बांटती फिरती है, कुछ पैसों के लिए.'' प्रीति ने तुरन्‍त एतराज किया, ‘‘नहीं, नहीं, मेरा यह मतलब नहीं...मैं एक आम बात कह रही थी. तुम्‍हारे जैसी दृ‍ढ़ चरित्र की लड़कियां आजकल कहां मिलती हैं. आज बाहर की दुनिया में इतनी चमक है और पैसों की इतनी खनक है कि इस सबके लिए कोई भी लड़की अपनी अस्‍मत बेचने के लिए आमादा रहती है. तुम बुरा मत मानो, मैं सच कहती हूं, आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियों के लिए कौमार्य और सतीत्‍व बेकार के शब्‍द हैं. मौज-मस्‍ती करना, ढेर सारा रुपया कमाना, चाहे जिस रास्‍ते से, और समाज में एक हैसियत बनाना उनका मकसद होता है. वह यह मानकर चलती हैं कि अगर आपके पास रुपया-पैसा है, रुतवा और हैसियत है, तो समाज में इज्‍जत है. आप सबके सामने सर उठाकर ही नहीं, गर्व से सीना तानकर चल सकते हैं, वरना कोरे सतीत्‍व और ढके-मुंदे इज्‍जतदार बदन की यहां क्‍या कीमत है?''
‘‘मैं उलझ सी गई हूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्‍या करूं?'' नमिता ने अपने हाथ मलते हुए कहा.

‘‘तू बच्‍ची है, आगे जीवन में तुझे पता नहीं किन-किन भेड़ियों का सामना करना पड़गा. पता नहीं कितने शिकारी रास्‍ते में जाल बिछाये तेरे हुस्‍न और जिस्‍म को नोचने के लिए छिपे बैठे होंगे. तू किस-किस से अपने को बचायेगी?'' प्रीति ने कहा. नमिता सचमुच उलझकर रह गयी थी. प्रीति की बातों से उसे और ज्‍यादा उलझन हो रही थी. उसकी बातों में आशा की कोई किरण नहीं दिखाई पड़ रही थी ऐसा लग रहा था, जैसे प्रीति उसे हालात से समझौता करने की सलाह दे रही थी क्‍या वह चड्‌ढा से मिली हुई थी और उसे बरगलाने तथा उसके इर्मान को डिगाने के लिए इस तरह की बदहवाश और हताश कर देने वाली बातें कर रही थी नमिता की आंखों में सागर उमड़ने को बैचेन दिख रहे थे. उसने निरीह भाव से प्रीति की तरफ देखा. प्रीति मुस्‍कुरा पड़ी. बोली, ‘‘हताश होने की जरूरत नहीं है, भगवान किसी को भी इतना निरीह नहीं बनाता कि उसके जिन्‍दा रहने के सारे रास्‍ते बन्‍द कर दे. जो आशा का दामन विपरीत परिस्‍थितियों में भी था में रहते हैं, वह अपना लक्ष्‍य अवश्‍य प्राप्‍त करते हैं.'' प्रीति ने उसका हौसला बढ़ाया. प्रीति की बातों से नमिता को भले ही कोई राहत न मिली हो, परन्‍तु बाद में उसने जो सलाह दी, उससे नमिता को धुंधले अन्धेरे में रोशनी की किरण दिखाई देने लगी. फिर भी एक संशय बना रहा. नमिता ने पूछा, ‘‘अगर मैं तबादले का आवेदन देती हूं तो उसे आफिस में ही देना पड़ेगा न! तब ये चड्ढा का बच्‍चा क्‍यों उसे आगे भेजेगा?''
‘‘बात तो तुम्‍हारी सही है, परन्‍तु एक रास्‍ता फिर भी है. आवेदन की एक प्रति हम पंजीकश्‍त डाक से सीधे डायरेक्‍टर को भेज सकते हैं. दूसरी प्रति प्रापर चैनेल के माध्‍यम से भेजने के लिए आफिस में दे देंगे. झक मार कर उसे मुख्‍यालय भेजना पड़ेगा.'' प्रीति ने बताया. दोनों ने बहुत सोच-समझकर एक-एक शब्‍द चुनकर तबादले का आवेदन बनाया. एक प्रति डाक से मुख्‍यालय भेज दी, हालांकि वह दिल्‍ली में ही था. दूसरी प्रति उसी दिन उसने आफिस में जमा कर दी...धड़कते दिल से कि जब उसका आवेदन चड्‌ढा के समक्ष प्रस्‍तुत होगा तो उसकी क्‍या प्रतिक्रिया होगी? क्‍या वह भड़क उठेगा और उसे बुलाकर अनाप-शनाप कुछ सुनाएगा या फिर शांत रहकर कोई ऐसी चाल चलेगा कि नमिता धराशायी हो जाएगी और उसकी आशाओं पर पानी फिर जाएगाउस सारे दिन नमिता बहुत बैचेन रही. सहकर्मियों से बातें करती थी, परन्‍तु मन कहीं और अटका हुआ था. न उसके दिल की धड़कन की रफ्‍तार कम हो रही थी, न उसकी बैचेनी. रह रहकर मन की सारी ग्रंथियां भूषण राज चड्ढा के इर्द-गिर्द घूमने लगती थीं. दुष्‍ट आदमी चाहे ऊपर से कितना ही मीठा दिखाई देता हो, प्‍यारी-प्‍यारी बातें करता हो, परन्‍तु अपनी दुष्‍टता से कभी बाज नहीं आता. नमिता के आवेदन को देखते ही चड्‌ढा की नसों में खून की जगह आग प्रवाहित होने लगी. वह अन्‍दर ही अन्‍दर सुलग उठा. थोड़ी देर बाद उसने नमिता को अपने कक्ष में बुलाया. वह डरती-कांपती उसके सामने पहुंची. एक चिड़िया बाज के सामने खड़ी थी अर्थपूर्ण नजरों से नमिता के सारे बदन को नंगा करता हुआ चड्‌ढा बोला, ‘‘तो उड़ने का ख्‍वाब देख रही हो.''
‘‘...'' वह अपनी आंखें नहीं उठा पा रही थी.
‘‘आवेदन देने के पहले तुम यह क्‍यों भूल गयी कि तुम्‍हारी स्‍थिति पिंजरे में कैद पंक्षी की तरह है. बाज तुम्‍हारी रखवाली कर रहा है. पिंजरे का द्वार खुल भी जाएगा तो बाज की तेज निगाहों और उसकी तीव्र गति से स्‍वयं को कैसे बचा पाओगी?'' नमिता की रूह कांप कर रह गयी. उसकी आंखों के सामने अन्धेरा सा छाता जा रहा था. कुछ समझ में नहीं आया तो लजरती आवाज में उसने दया की भीख मांगी, ‘‘मैं आपकी बेटी जैसी हूं, मुझ पर दया कीजिए.''
‘‘हुंह, दया...क्‍या तुम मुझ पर दया कर सकती हो? बोलो, तुम भी एक लड़की हो, तुम्‍हारे पास भी भावनाएं और संवेदनाएं हैं. क्‍या तुम मेरे दिल का हाल नहीं समझ सकती? तुम अपनी थोड़ी सी दया और प्रेम की एक छोटी बूंद मेरे ऊपर टपका दो, फिर देखो, मैं तुम्‍हारे ऊपर दया की इतनी वर्ड्ढा करूंगा कि तुम्‍हारा जीवन धन्‍य हो जाएगा. बोलो मंजूर है?'' वह हंसा. नमिता के पास उसकी बात का कोई जवाब नहीं था. वह चुपचाप बाहर निकल आई. चड्‌ढा की कुटिल हंसी देर तक उसका पीछा करती रही.

नमिता को मुख्‍यालय में बैठे वरिष्‍ठ अधिकारियों पर पूरा भरोसा था. वह उन्‍हें जानती नहीं थी, परन्‍तु इतना अवश्‍य समझती थी कि वहां के सारे अधिकारी पत्‍थरदिल नहीं हो सकते थे. हर अधिकारी चड्ढा‌  की तरह क्रूर और दुष्‍ट नहीं हो सकता. जब उसका आवेदन मुख्‍यालय पहुंचेगा तो संबंधित अधिकारी उस पर सहानुभूति पूर्वक विचार अवश्‍य करेंगे. भगवान पर भी उसे पूरा भरोसा था. आजकल कुछ ज्‍यादा ही हो गया था. सुबह-शाम घर में साईं बाबा की पूजा करती थी. दफ्‍तर आते समय भी लोदी रोड पर स्‍थित साईं मन्‍दिर में मत्‍था टेकने के लिए जरूर रुकती. इतनी श्रद्धा और भक्‍ति के बाद भी क्‍या भगवान उसकी रक्षा नहीं करेंगे? कई दिन बीत गए. दिनों दिन नमिता की चिन्‍ता बढ़ती जा रही थी. इस चिन्‍ता में वह आफिस का काम भी ढंग से न कर पाती. उसकी कुशलता और क्षमता खत्‍म होती जा रही थी. काम में कोई न कोई गलती कर देती. चड्‌ढा उसकी मनोस्‍थिति समझ रहा था. नमिता अभी नैतिकता और मर्यादा की बाढ़ में बह रही थी. वह जानता था कि बाढ़ का पानी एक न एक दिन कम होगा. वह स्‍थिर और मंथर गति से प्रवाहमान होगा, तब नमिता उसकी बांहों में होगी और वह आसमान की तरह उसे अपने साए में समेट लेगा. नमिता की परेशानी के मद्देनजर उस ने उसे एक दिन समझाते हुए कहा, ‘‘क्‍यों अपनी जान सुखा रही हो? कंचन काया को पत्‍थर मत बनाओ. अभी मैंने तुम्‍हारा आवेदन आगे नहीं भेजा है. मेरा कहना मान लो, तुम्‍हारा कुछ बिगड़ेगा नहीं..औरत का इन संबंधों से कुछ बिगड़ता भी नहीं है; बल्‍कि वह और ज्‍यादा खुश रहने लगती है. इतनी छोटी सी बात तुम्‍हारी समझ में क्‍यों नहीं आ रही है? सुन्‍दरता, यौवन और धन का एक ही उपयोग होता है, भोग करना. इनको संचित करके रखोगे तो विनाश ही होगा.''
नमिता फिर भी नहीं समझी. वह समझकर भी नहीं समझना चाहती थी.
एक महीने बाद उसे पता चला कि बास ने उसका आवेदन मुख्‍यालय अग्रसारित तो कर दिया है, परन्‍तु अनुशंसा में जो कुछ लिखा है, उसे सुनकर नमिता के पांवों तले की जमीन ही खिसक गई. वह व्‍यक्‍ति जो उसको प्‍यार करने का दावा करता था, उसके सुन्‍दर शरीर का उपभोग करना चाहता था, उसके अनुपम सौन्‍दर्य से स्‍वयं को रससिक्‍त करके अनुकंपित होना चाहता था, उसके मन में नमिता के भविष्‍य के साथ खिलवाड़ करने और उसे पूरी तरह से बर्बाद कर देने के लिए ये विचार किस प्रकार आए होंगे, यह नमिता जैसी कमसिन, दुनियादारी की समझ न रखने वाली, अल्‍हड़ लड़की की समझ से परे था प्रीति ने फाइल देखने के बाद उसे बताया था कि बास ने उसके आवेदन पर क्‍या मन्‍तव्‍य दिया था. नमिता के कानों में कुछ शब्‍द पड़े, कुछ नहीं...वह अर्द्ध मूर्छित हो गयी थी. बस इतना समझ में आया कि वह कामचोर थी, अपना काम ढंग से नहीं कर पाती थी. अंग्रेजी अच्‍छी नहीं थी. स्‍टेनोग्राफर होने के बावजूद डिक्‍टेशन नहीं ले पाती थी. टाइपिंग में भी ढेर सारी गलतियां करती थी, जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता था. उसे सुधारने और ढंग से काम करने के तमाम अवसर मुहैया कराए गये, परन्‍तु वह अपने कार्य में आवश्‍यक सुधार लाने के बजाय और ज्‍यादा लापरवाही बरतने लगी थी. शायद वह किसी अनजान लड़के के प्‍यार में गिरफ्‍तार थी, जिससे हमेशा मोबाइल पर बातें करती रहती थी. काम में मन न लगाने का यह भी एक बड़ा कारण था. आगे बास ने लिखा था कि समझाने के साथ-साथ उसे काम में सुधार लाने के तरीके भी सुझाए गये थे, परन्‍तु सारे प्रयत्‍न विफल हो गये और नमिता में आवश्‍यक सुधार नहीं आने के बाद उसे चेतावनी दी जाने लगी, जिससे घबराकर उसने दूसरे कार्यालय में अपने तबादले के लिए आवेदन दिया था. यहां तक जो कुछ बास ने लिखा था, वह सत्‍य तो नहीं था, परन्‍तु उससे नमिता का कोई नुकसान भी नहीं होने वाला था. लेकिन अन्‍तिम भाग विष्‍फोटक था, जिसे सुनकर नमिता के होश उड़ गये थे. चड्ढा‌  ने लिखा था -
‘‘सरकारी कार्य में अनियमिता और लापरवाही बरतने, निपुणता और निष्‍ठा में कमी एवं अनुशासनहीनता के कारण मै मिस नमिता के विरुद्ध अनुशासनात्‍मक विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा करता हूं. इसके अतिरिक्‍त जब तक विभागीय कार्रवाई समाप्‍त न हो जाए, मिस नमिता का किसी और कार्यालय में स्‍थानान्‍तरण न किया जाए; ताकि अनुशासनात्‍मक कार्रवाई सुचारू रुप से संपन्‍न हो सके.''
नमिता की उम्‍मीद के सारे चराग बुझ गये. वह नाउम्‍मीद हो गई. दफ्‍तर के सारे कर्मचारियों की सहानुभूति उसके साथ थी, परन्‍तु वह भी नमिता की तरह लाचार थे. बास के दुष्‍ट स्‍वभाव, गन्‍दी हरकतों और भेड़िये जैसी चालाकी से परिचित थे वह निरंकुश था, परन्‍तु उच्‍चाधिकारियों को अपनी मुट्‌ठी में कर रखा था. बेइर्मान था, परन्‍तु अकेला सब माल हजम नहीं करता था. नियमित रूप से हेड आफिस जाकर अधिकारियों की सेवा करता रहता था. पैसे के बल पर सभी को उसने अपने वश में कर रखा था. सालों से एक ही दफ्‍तर में जमा हुआ था. जिसके बारे में जो कुछ लिखता था, हेड आफिस के अधिकारी तुरन्‍त उसे मान लेते थे. नमिता के मामले में भी यही हुआ. उसकी अनुशंसा तुरन्‍त मान ली गई थी. शायद उसने खुद जाकर डायरेक्‍टर से मुलाकात करके उन्‍हें उल्‍टा-सीधा समझा दिया था. एक हफ्‍ता भी न बीता कि हेड आफिस से नमिता के आवेदन का जबाव आ गया. उसके तबादले के निवेदन को निरस्‍त करते हुए उसके खिलाफ विभागीय जांच प्रांरभ कर दी गई थी और मजे की बात ये कि जांच अधिकारी भूषण राज चड्‌ढा को नियुक्‍त किया गया था. जो उसे सता रहा था, वहीं उसका जांच अधिकारी था...लोकतन्‍त्र का अच्‍छा मजाक था मानसिक रूप से नमिता इतना थक चुकी थी कि वह लगभग बीमार रहने लगी थी. दो-तीन दिन वह दफ्‍तर नहीं आई, परन्‍तु उससे क्‍या फायदा होता? बीमारी के बहाने वह कितनी छुट्टी ले सकती थी. अन्‍ततः छुट्‌टी भी तो चड्‌ढा को ही मंजूर करनी थी. वह कोई और अडं़गा लगा देता तो...तो नमिता के हाथ में क्‍या था ? वह क्‍या कर सकती थी ? उसके हाथ में बहुत कुछ था और वह बहुत कुछ कर सकती थी. तीन दिन तक छुट्टी में रहने पर उसने बहुत कुछ सोचा, और बहुत कुछ समझने की कोशिश की. घर में किसी से बात नहीं की, परन्‍तु अपने जीवन और वर्तमान परिस्‍थितियों का गहराई से मनन किया. जीवन में आदमी कितना खोता है, कितना पाता है. यह उसके कर्म पर निर्भर करता है. अगर वह कुछ खोता है, तो अपनी गलती से और वह अपनी गल्‍तियों से कितना सीखता है, यह भी उसी के ऊपर निर्भर रहता हैवह गल्‍तियां नहीं भी करता है, तो भी जीवन किस हद तक उसके प्रति कठोर हो सकता है, यह नमिता अच्‍छी तरह से देख रही थी. नमिता ने कोई गलत काम नहीं किया था, परन्‍तु वह बुरे दौर से गुजर रही थी. उसकी केवल एक ही गल्‍ती थी कि वह एक लड़की थी, वह भी सुन्‍दर और वह ऐसे समाज में पैदा हुई थी, जहां हर व्‍यक्‍ति खूबसूरती को नोचने और बर्बाद करने के लिए तत्‍पर रहता है.
परन्‍तु क्‍या ज्‍यादतियों की कोई सीमा नहीं है...? उसकी भी कोई सीमा होगीकोई किसी पर कितना जुल्‍म कर सकता है. हम जुल्‍म सहते चले जाते हैं, इसीलिए हमें और ज्‍यादा जुल्‍मों का सामना करना पड़ता है. अगर हम उसका मुकाबला करें, तो शायद इससे छुटकारा मिल जाए. तुरन्‍त नहीं तो थोड़े समय बाद...तो फिर हम मुसीबतों का सामना क्‍यों नहीं करते? क्‍यों हम थोड़ी सी परेशानी आने पर घबराकर अपने कर्तव्‍यों से च्‍युत हो जाते हैं? परेशानी में पड़कर हम अपना जोश और होश क्‍यों खोएं. निष्‍ठा और इर्मानदारी से अगर हम अपना कार्य करते रहें, तो भी क्‍या परेशानियां हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगी? छोड़ेंगी, जरूर छोड़ेगी. उसने अपने मन में सोचा. जब वह तीन दिन बाद वापस आई तो कुछ प्रफुल्‍लित लग रही थी. मन को काफी हद तक संयत कर लिया था, स्‍वयं को समझा लिया था कि चिन्‍ता करने से किसी समस्‍या का समाधान नहीं हो सकता था. स्‍थिर दिमाग से हर समस्‍या का निदान संभव था...उचित या अनुचित...यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम कौन सी स्‍थिति स्‍वीकार करते हैं. प्रीति ने उसे समझाया, ‘‘देखो, नमिता, स्‍थिति अब गंभीर हो चुकी है. भेड़िये को ही अगर भेड़ की रखवाली के लिए नियुक्‍त किया जाय तो तुम समझ सकती हो कि भेड़ का क्‍या हश्र होगा. यहां तो भेड़िये को भेड़ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा गया है. बताओ, भेड़िये का स्‍वभाव क्‍या है? ...शिकार करना. जब भेड़ उसके सामने है और शिकार करने के लिए वह स्‍वतन्‍त्र है, तो वह इसके सिवा और क्‍या करेगा. वह तुम्‍हारी सुरक्षा किस प्रकार करेगा? यह उसका स्‍वभाव नहीं है.''
‘‘तब...?'' नमिता ने एक याचक की तरह प्रीति को देखा, शायद वह कोई राह बता सके. प्रीति पर वह अत्‍यधिक विश्‍वास करने लगी थी.
‘‘समझदारी से काम लो. अगर तुम नौकरी छोड़ती हो या जांच के बाद तुम्‍हें नौकरी से निकाल दिया जाता है, तो दोनों में फर्क क्‍या है? दोनों स्‍थितियों में तुम बेरोजगार हो जाओगी. तब तुम्‍हारे घर का सुख-चैन, दो जून की रोटी, भाई बहनों की शिक्षा, तुम्‍हारी शादी, एक सुखमय जीवन...सब खटाई में पड़ जाएगा.'' प्रीति बहुत धीरे-धीरे उसे समझाने के अंदाज में बता रही थी आगे वह बोली, ‘‘अगर तुम्‍हारी नौकरी बनी रहेगी, तो सारी सुख-सुविधायें तुम्‍हारे कदमों पर बिछी रहेगी. तुम्‍हारी सारी समस्‍याओं का समाधान हो जाएगा, भौतिक इच्‍छाओं की पूर्ति होती रहेगी, अच्‍छे घर में शादी हो जाएगी और क्‍या चाहिए तुम्‍हें?''
नमिता की समझ में नहीं आया कि वह अपनी नौकरी कैसे बचा सकती थी ? लेकिन पूछा नहीं...प्रीति स्‍वयं ही बताने लगी, ‘‘तुम नौकरी छोड़ दोगी, तो दूसरी नौकरी जल्‍दी कहां मिलेगी? वह भी सरकारी नौकरी. प्राइवेट नौकरी भले ही मिल जाए. फिर इस बात की क्‍या गारण्‍टी कि नए दफ्‍तर में भूषण राज जैसे जवान, सुन्‍दर और कमसिन काया के शौकीन नहीं होंगे. हर जगह एक ही स्‍थिति है, नमिता मानव रूपी मगरमच्‍छ हर जगह मुंह खोले जवान लड़कियों को निगलने के लिए तत्‍पर रहते हैं. मेरा कहना मानो, तो समझौता कर लो. सारे संकट एक ही झटके में दूर हो जाएंगे. किसी को पता भी नहीं चलेगा. शारीरिक सुख के साथ-साथ अन्‍य सुख भी तुम्‍हारी झोली में भर जाएंगे, नौकरी भी बची रहेगी.'' नमिता का सन्‍देह सच में बदल गया. कई बार उसे शंका होती थी कि प्रीति उसे किसी न किसी जाल में फंसाएगी...वह चड्‌ढा की दलाल थी. उसने शंकित नजरों से प्रीति को देखा, तो वह हल्‍के से मुस्‍कुरायी, ‘‘तुम अपने मन में कोई शंका मत पालो. उससे तुम्‍हारी समस्‍या का समाधान नहीं होगा. तुम मुझे भले ही बुरा समझो, परन्‍तु इसमें तुम्‍हारी ही भलाई है. सोचो, सुन्‍दरता और जवानी का क्‍या उपयोग...? यह सुख देने के लिए होती है, न कि दुःख...तो फिर तुम सुख का रास्‍ता क्‍यों नहीं अपनाती?'' नमिता की अक्‍ल के ताले खुल गये थे. वह अच्‍छी तरह समझ गई थी कि इस दुनिया में पुरुष ही नहीं, औरतें भी एक-दूसरे की दुश्‍मन होती हैं. कौन किस चरित्र का है, पता ही नहीं चलता. सभी मनुष्‍य का भेष धरे रहते हैं, परन्‍तु उन में कोई भेड़िया, तो कोई सांप होता है. औरतें कब नागिन बनकर किसी को डस लें, पता ही नहीं चलता. कई औरतें लोमड़ी की तरह चालाक होती हैं, जो बरगलाकर भेड़ जैसी औरतों को भेड़िये के चंगुल में फंसाती है. नमिता बहुत कुछ समझ चुकी थी वह मजबूर थी, परन्‍तु उस मजबूरी के बीच से भी वह अपना बचाव कैसे कर सकती थी, यह वह समझ चुकी थी. उसके एक दृ‍ढ़ निश्‍चय किया और परिस्‍थिति का सामना करने के लिए तैयार हो गई. र्प्रीति अभी तक उसके दिमाग की सफाई करने में जुटी हुई थी, ‘‘औरत और मर्द के सम्‍बन्‍ध में किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, परन्‍तु सुख दोनों को प्राप्‍त होता है. तुम समझ रही हो न! जाकर एक बार चड्‌ढा से माफी मांग लो. जैसा वह कहे, कर दो. जांच भी खतम हो जाएगी और तुम्‍हारे चेहरे की पहले वाली रौनक एवं सुन्‍दरता फिर से लौट आएगी. फिर वही मोहक हंसी तुम्‍हारे गुलाबी होंठों पर नृ‍त्‍य करेगी.'' अब किसी और प्रवचन की नमिता को जरूरत नहीं थी. वह झटके से उठी और धीरे-धीरे कदमों से चड्‌ढा के कमरे में प्रवेश कर गई. आज न तो उसके मन में डर था, न वह कांप रही थी. उसकी आंखें भी झुकी हुई नहीं थीं. वह सीधी चड्‌ढा की आंखों में देख रही थी. पहले तो वह चौंका, फिर नमिता के दश्‍ढ़ चेहरे को देखकर हौले से मुस्‍कुराया और कुर्सी से उठकर बोला-
‘‘आओ, आओ, निम्‍मी! कैसी हो?'' उसके मुंह से लार टपकने लगी थी.
‘‘मैं ठीक हूं!'' उसने सपाट स्‍वर में कहा, ‘‘मैं आप से माफी मांगने आई हूं, उस सबके लिए, जो अभी तक हुआ है और उस सबके लिए, जो अभी तक नहीं हुआ, परन्‍तु कभी भी हो सकता है.'' उसका अन्‍दाज ऐसा था, जैसे वह कह रही हो- ‘चड्‌ढा साहब! मैं आपको देखने आई हूं कि कितने खूंखार भेड़िये हैं आप! किस तरह आप औरत के शरीर को खाते हैं, नोंचकर या समूचा...चलिए दिखाइए अपनी ताकत!'
भेड़िये की खुशी का ठिकाना न रहा. शिकार अपने आप उसके जाल में फंस गया था. वह अपनी जगह से उठा और इस तरह अंगड़ाई ली, जैसे वह अच्‍छी तरह जानता था कि अब शिकार उसके पंजे से बचकर कहीं नहीं जा सकता था. उसे अपनी चालों पर पूरा भरोसा था. वह धीरे-धीरे मुस्‍कुराते हुए आगे बढ़ रहा था. भेड़ को डर नहीं लग रहा था. वह सीधे तनकर खड़ी थी. भेड़िया नजदीक आ गया था, वह फिर भी नहीं डरी. भेड़िया थोड़ा सहमा...इस भेड़ को आज क्‍या हो गया? वह उसके भयानक मुंह के तीखे दांतों और नुकीले पंजों से भी नहीं डर रही थी. भेड़िया भेड़ को जिन्‍दा निगलने की उतावली और जल्‍दबाजी में था. भेड़ अगर तनकर खड़ी रही, उससे डरकर भागी नहीं, तो फिर शिकार करने का फायदा क्‍या?
भेड़िये ने अपने नुकीले पंजे भेड़ के कन्धे पर रखे और दर्दनाक स्‍थिति तक उसके नर्म गोश्‍त में चुभाया, परन्‍तु भेड़िये को भेड़ के कन्धे पत्‍थर के लगे. उसने अपना थूथन भेड़ के सुन्‍दर लपलपाते मुख की तरफ बढ़ाया, तो उसे लगा जैसे वह एक आग का गोला निगल रहा हो. नमिता के दृ‍ढ़ आत्‍मविश्‍वास और आंखों की अनोखी चमक ने चड्‌ढा के सारे हौसलों को पस्‍त कर दिया. उसके सौन्‍दर्य और यौवन की आग इतनी तेज थी कि चड्‌ढा उसकी आंच से ही पिघल गया. अचानक उसे एक झटका सा लगा और उसके हाथ-पैर ढीले पड़ गये. वह दौड़ने के पहले ही थक गया था उसको अपने जाल में फंसाने के लिए चड्‌ढा ने न जाने कितने जतन किये थे. वह उसके फंदे मे आ भी गई थी, परन्‍तु उसको नोचकर खाने के सारे मंसूबे धरे के धरे रह गये. कुछ करने के पहले ही पसीने से लथ-पथ वह अपनी कुर्सी पर जा गिरा था. वह अपनी सांसों को दुरुस्‍त भी नहीं कर पाया था कि नमिता की चुभती हुई आवाज उनके कानों में पड़ी, ‘‘आप तो बहुत समझदार, बुद्धिमान और पौरुषवान व्‍यक्‍ति हैं सर! कहां गई आपकी मर्दानगी? इसी बूते पर एक जवान और सुन्‍दर लड़की को भोगने के मंसूबे बांध रहे थे और इतनी कुटिल चालें चल रहे थे आइए, आज मैं सामने खड़ी हूं, स्‍वेच्‍छा से अपने को समर्पित कर रही हूं...जितना चाहे भोग लीजिए...चलिए, उठिए!'' चड्‌ढा साहब में उठने की तो दूर, नमिता की आंखों में भी देखने की ताकत नहीं थी.

Wednesday, May 31, 2017

सार्वजनिक शौचालयों की जर्जर हालात का नतीजा

सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार लगातार स्वच्छता अभियान का ढिंढोरा पीट रही है। हाथों में झाड़ु लेकर फ़ोटो खिंचवाने से लेकर टीवी, अख़बार, रेडियो में जमकर पैसा ख़र्च कर विज्ञापन के माध्यम से जागरूकता फैलाने की बात हो रही है। पर असल में स्वच्छ भारत बनाने के लिए जिस चीज़ की बुनियादी ज़रूरत है उस पर कोई ख़र्च नहीं किया जा रहा है। मुम्बई जैसे महानगर में जहाँ 60 फ़ीसदी आबादी झुग्गी झोपड़ियों में रहती है व बुनियादी ज़रूरतों से वंचित है, वहाँ सार्वजनिक शौचालयों की हालत देखकर इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है।
सार्वजनिक शौचालयों के इन्हीं जर्जर हालात का नतीजा हाल ही में मुम्बई में कई लोगों की मौत के रूप में सामने आया। बीती 3 फ़रवरी को मानखुर्द के इन्दिरानगर में एक सार्वजनिक शौचालय का फ़र्श सेप्टिक टैंक में धँस गया। उस वक़्त शौचालय में 20-25 लोग मौजूद थे। ज़्यादातर लोग उस गन्दगी में गिर पड़े। फ़ायर ब्रिगेड व पुलिस की गाड़ी लगभग एक घण्‍टे बाद पहुँची व तब तक इलाक़े के लोगों ने ही अपने प्रयास से अधिकांश को निकाल लिया था। पुलिस व मुख्यधारा के समाचार पत्रों ने तीन व्यक्तियों हरीश टीकेकर (उम्र 40), गणेश सोनी (40) मोहम्मद अंसारी (36) की मौत की पुष्टि की है। पर इलाक़े के लोगों के अनुसार कुल 7 व्यक्तियों की मौत हुई। 1 व्यक्ति की पहचान नहीं हो पायी (यद्यपि उसकी लाश निकाली गयी थी) व तीन व्यक्तियों को उस टैंक से निकाला ही नहीं गया। इस झुग्गी बस्ती में ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो अकेले रहते हैं व बाहर से मज़दूरी करने आते हैं। ऐसे में ये तीन व्यक्ति कौन थे, इसकी भी पहचान नहीं हो पायी। पर दबी जबान में कई लोगों ने यह कहा कि उस घटना के बाद से इलाक़े के तीन लोग गायब हैं।
यह शौचालय म्हाडा (महाराष्ट्र हाउसिंग एण्ड एरिया डवलपमेण्‍ट ऑथोरिटी) द्वारा सिर्फ़ दस साल पहले बनाया गया था। इसके निर्माण में घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल का अन्दाज़ा इसी से लगाया जा सकता है। ये जिस विधायक के फ़ण्ड से बना वो बाद में म्हाडा के चैयरमेन भी बने। ऐसे कितने ही सार्वजनिक शौचालय व मकान उन्होंने बनवाये होंगे व उनकी हालत क्या होगी, ये अन्दाज़ा लगाना कठिन नहीं है। शौचालय की जर्जर हालात के बारे में वहाँ के निवासियों ने लगातार शिकायतें भी की थीं पर जिस ठेकेदार को ये शौचालय रखरखाव के लिए ठेके पर दिया गया था, उसके कानों पर जूँ भी नहीं रेंगी। ठेकेदार को अभी हाल ही में म्हाडा से 9 लाख रुपये का भुगतान भी मरम्मत हेतु किया गया था पर वो सब भी उसकी मुनाफ़़ेे की भेंट चढ़ गये।
जिन तीन व्यक्तियों की मौत की पुष्टि हुई है वे सब अपने घर के इकलौते कमाने वाले सदस्य थे। लोगों की मौत की जि़म्मेदार सरकारी संस्था म्हाडा की तरफ़ से मृतकों को कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया है। वैसे तो अभी मुम्बई में चुनावों का मौसम चल रहा है। महानगरपालिका के चुनावों के कारण गली-गली में पार्षद पद के प्रत्याशी लोगों के आगे हाथ जोड़ रहे हैं पर सिर्फ़ मध्यम वर्ग तक के ही आगे। ग़रीब आबादी के बीच इस तरह की दुखदायी घटना होने पर भी किसी नेता मन्त्री का न पहुँचना यह बताता है कि ग़रीब आबादी की तमाम सारी राजनैतिक पार्टियों के लिए क्या अहमियत है ।
विज्ञापनों पर जमकर ख़र्च पर ज़रूरी कामों पर ख़र्चने को पैसा नहीं
नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आते ही स्वच्छता अभियान की जो नौटंकी शुरू हुई थी, वो अभी भी जारी है। टीवी पर अमिताभ बच्चन से लेकर नोटों पर स्वच्छता अभियान का प्रचार करने पर तो जमकर लुटाया जा रहा है पर सार्वजनिक सुविधाओं पर न के बराबर ख़र्च किया जा रहा है। सरकार ने नवम्बर 2015 से एक विशेष टैक्स भी इस बाबत लगाया था। स्वच्छ भारत सैस नाम के इस कर से जहाँ पिछले आधे वित्त वर्ष में 3901 करोड़ रुपये जुटे वहीं इस वित्त वर्ष में लगभग 10000 करोड़ रुपया जुटेगा। इस पैसे का इस्तेमाल कर ज़रूरतमन्दों को बेहतर शौचालय सुविधा मुहैया करवायी जा सकती थी पर इस पैसे का ज़्यादातर इस्तेमाल गाँवों में शौचालय बनाने के नाम पर व विज्ञापन के लिए किया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे ज़्यादातर शौचालय सिर्फ़ पेपर पर बन रहे हैं हक़ीक़त में नहीं। दिसम्बर 2015 में एक संस्था द्वारा 10 जि़लों में किये गये एक सर्वे के अनुसार बताये गये शौचालयों में 29 प्रतिशत सिर्फ़ काग़ज़ों पर हैं जबकि 36 प्रतिशत इस्तेमाल किये जाने लायक ही नहीं हैं। 2014-15 में सरकार द्वारा 212.57 करोड़ रुपये विज्ञापनों पर ख़र्च किये गये, वहीं 2015-16 में यह ख़र्च बढ़कर 293.14 करोड़ हो गया।
मुम्बई शहर की बात की जाये तो यहाँ पर सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बेहद कम है और जो हैं, उनकी हालत खस्ता है। मुम्बई शहर की कुल आबादी का साठ प्रतिशत हिस्सा झुग्गी बस्तियों में रहता है। यहाँ के 78 प्रतिशत सार्वजनिक शौचालयों में पानी की सुविधा नहीं है और 58 प्रतिशत बिजली से वंचित हैं। लोगों को पानी की व्यवस्था बाहर से ही करनी पड़ती है। बिजली न होने के कारण महिलाएँ व बच्चे इन शौचालयों का इस्तेमाल रात के समय नहीं करते हैं। इससे उनमें कई बीमारियाँ पनपती हैं। सार्वजनिक शौचालयों की संख्या इतनी कम है कि कहीं-कहीं तो 200 से ज़्यादा व्यक्तियों के ऊपर एक शौचालय है। जिस इलाक़े में दुर्घटना हुई है, वहाँ 5000 लोगों के लिए 22 शौचालय (एक यूनिट) थे। नरेन्द्र मोदी स्वच्छता अभियान के अपने भाषणों में जनता को अपना नज़रिया बदलने की सलाह देते हैं। कुछ विज्ञापन भी ऐसे आते हैं जिसमें दिखाया जाता है कि लोग मोबाइल तो इस्तेमाल करते हैं पर शौचालय इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे विज्ञापन करने व कराने वालों को ऐसे सार्वजनिक शौचालयों में लाने की ज़रूरत है। यहाँ इतनी असहनीय बदबू होती है कि इंसान 10 मिनट मुश्किल से रुक पायेगा। ऊपर से ऐसी दुर्घटनाएँ होने का डर। ये दुर्घटना भी कोई पहली दुर्घटना नहीं थी। इससे पहले मानखुर्द में ही मार्च 2015 में एक शौचालय के धँसने से एक महिला की मौत हुई थी, 2016 में मालाड व गोरेगाँव में दो बच्चों की इसी तरह की घटना में मौत हो गयी थी। ऐसे में अगर लोग मजबूरी में खुले में शौच करने को मजबूर हैं तो वो लोगों की ग़लती नहीं है बल्कि इस सरकार और व्यवस्था का नाकारापन और बेशर्मी है।
सार्वजनिक शौचालय – एक मालदार उद्योग
मुम्बई के ज़्यादातर सार्वजनिक शौचालय बनाये तो म्हाडा या बीएमसी द्वारा जाते हैं पर उन्हें चलाने का ठेका एनजीओ या प्राइवेट कम्पनियों को दिया गया है। बेहद ग़रीब इलाक़े में एकदम जर्जर शौचालय के लिए भी ये ठेकेदार 2, 3 से 5 रुपया चार्ज लेते हैं। पूरी मुम्बई में सार्वजनिक शौचालयों से सालाना लगभग 400 करोड़ की कमाई होती है। जाहिर है कि ये इन कम्पनियों के लिए बेहद मुनाफ़़ेे का सौदा है जहाँ ख़र्च कुछ भी नहीं है और कमाई इतनी ज़्यादा है।
कब तक सहेंगे, यूँ चुप रहेंगे
मानखुर्द के इस इलाक़े में दुर्घटना के बाद लोग आक्रोशित होकर उसी दिन बाक़ी लाशों को निकालने की भी माँग कर रहे थे। तब उन पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया। इस घटना के बाद से वो सार्वजनिक शौचालय भी बन्द है और लोग मज़बूरी में 3 किलोमीटर दूर के दूसरे शौचालय में या फिर पास ही मौजूद खाड़ी में जाने को मजबूर हैं। न तो उसकी जगह नया सार्वजनिक शौचालय बनाने की बात हो रही है, न ही फ़ौरी तौर पर कोई मोबाइल शौचालय चलवाने की। आज ज़रूरत है कि यहाँ के सब लोग एकजुट होकर मृतकों के आश्रितों के लिए न सिर्फ़ मुआवजे की माँग करें बल्कि अपने इलाक़े में इस तरह की बेहद बुनियादी सुविधाएँ लागू करवाने के लिए एकजुट हों। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो कोई भी नेता-मन्त्री आकर हमें अपने हक़-अधिकार नहीं देगा। कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की, वो तभी कुछ करेंगे जब जनता एकजुट होकर उन्हें मज़बूर करे।

Tuesday, May 30, 2017

सरकारी अस्पतालों के हालात को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बेहतर स्वास्थ्य सेवा आज भी लोगों की पहुंच से दूर है।

सरकारी अस्पतालों के हालात को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बेहतर स्वास्थ्य सेवा आज भी लोगों की पहुंच से दूर है। ज्यादातर लोग अगर कोई विशेष मजबूरी न हो तो इलाज से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राइवेट अस्पतालों की महंगी सेवा लेने को ही मजबूर हैं। यमुनापार में सरकारी अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। इलाज से पहले ही मरीजों और उनके परिजनों को यह समझाना पड़ता है कि संघर्ष के बाद ही इलाज कराने में उन्हें सफलता मिलेगी। ज्यादातर अस्पतालों में अव्यवस्था होने के कारण लोगों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है। समय-समय पर राजनीतिक और आधिकारिक गलियारों से स्वास्थ्य संबंधित सेवाओं को सुधारने को लेकर आश्वासन मिलते रहते हैं, लेकिन एक अरसा बीत जाने के बाद भी अस्पतालों के हालात में बहुप्रतीक्षित सुधार की उम्मीद बेमानी ही बनी हुई है। इलाके के ज्यादातर अस्पतालों में बिस्तरों के साथ-साथ स्टाफ की कमी भी है। हर में सरकारी अस्पतालों का हाल प्रशासनिक उपेक्षा के चलते बेहाल है, वहीं यमुनापार के स्वास्थ्य केंद्रों में भी लापरवाही कभी भी किसी मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। हाल ही में जिला प्रशासन ने प्रीत विहार उपमंडल में स्वास्थ केंद्रों का औचक निरीक्षण किया था। इस दौरान कई स्वास्थ केंद्रों में लापरवाही उजागर हुई थी। स्वास्थ्य केंद्रों के रिकार्ड और स्टाक में भी भारी अंतर का पता चला था। वहीं एक्पायर हो चुकी दवाइयों की मौजूदगी का भी खुलासा हुआ था। इस प्रकार के खुलासे के बाद इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर क्या होगा, यह खुद ही सोचा जा सकता है। बहरहाल, वजह जो कुछ भी हो,
लेकिन इसका खामियाजा मरीजों को ही उठाना पड़ता है। हाल ही में लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में पांच साल के अंदर साढ़े चार हजार मरीजों की मौत का मामला उजागर हुआ था। इसके बाद मानवाधिकार आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को तलब करते हुए मामले की जांच कर आठ हफ्तों के भीतर रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं। एक के बाद एक खुलासे के बाद इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं की कैसी स्थिति होगी, यह समझने वाली बात है। साथ ही बेहतर स्वास्थ्य समेत बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के सरकारी दावे भी खोखले साबित हो रहे हैं।
नामचीन अस्पतालों में मरीज बेहाल
यमुनापार इलाके में कहने को तो एक से एक अस्पताल हैं, लेकिन इन अस्पतालों की चारदीवारी के अंदर मरीजों का हाल बुरा है। इसकी पुष्टि मरीजों और घटनाओं के माध्यम से होती रही है। चिकित्सकों, अस्पताल प्रबंधन और कर्मचारियों के व्यवहार से भी स्वास्थ्य सेवाओं की कलई कई बार खुल चुकी है, लेकिन हर बार सेवाएं बेहतर करने की बात कर उदासीनता पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही है। इलाके के ज्यादातर अस्पतालों में दवाओं का अभाव सदा बना रहता है, वहीं बिस्तरों की कमी के चलते भी यहां आने वाले मरीजों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में वार्ड संबंधी जानकारी आसानी से न मिलने के कारण मरीजों तक पहुंचने के लिए बड़ी संख्या में आने वाले परिजनों को लंबे चक्कर काटने पड़ते हैं, वहीं चिकित्सकों की लापरवाही के चलते मरीजों की जान से खिलवाड़ होने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। हालातों पर गौर करें तो ऐसा साफ दिखाई दे रहा है कि अस्पताल में मरीज की जान से कर्मचारियों का कोई सरोकार नहीं रह गया है। जीटीबी अस्पताल में साफ-सफाई के अभाव के चलते मरीजों व परिजनों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शौचालयों में दुर्गध के चलते मरीज परेशान रहते हैं। यहा आवारा पशु खुलेआम घूमते रहते हैं। कई बार यहा मरीजों को घटों लाइनों में लगे होने के बावजूद पर्याप्त दवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। यही हाल स्वामी दयानंद अस्पताल का भी है, जहा अस्पताल स्टाफ का व्यवहार यहा आने वाले लोगों से ठीक नहीं देखा जाता है। लोगों की मानें तो सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर रिश्वत की माग कर्मचारियों की ओर से किए जाने के कारण भेदभाव का माहौल बना हुआ है। कई सरकारी अस्पतालों में ब्लड बैंक खस्ताहाल हैं। जीटीबी, स्वामी दयानंद के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल व जग प्रवेशचंद्र अस्पताल भी स्टाफ की कमी झेल रहे हैं।
मरीजों की लंबी कतारों के सामने बेबस चिकित्सा व्यवस्था
इलाके के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों की लंबी कतारें होती है। यह आलम ओपीडी सेवा के साथ ही दवाइयों को लेकर भी रहता है। लोगों के मुताबिक मरीजों की कतारों के बीच ही बड़ा खेल चलता है। अपने अनुभवों के आधार पर लोगों ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना पीड़ा बढ़ाने जैसा साबित होता है। चिकित्सकों का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार और कर्मचारियों में सेवा भावना की कमी अक्सर मरीजों का दर्द बढ़ाने का काम करती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि इलाज के नाम पर मिलने वाली परेशानी का फायदा बिचौलियों को मिलता है। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर ऐसे लोग पहले से ही परेशान लोगों को अपने चंगुल में फंसाकर उनका आर्थिक दोहन करते हैं। इन सबसे आजिज आकर ज्यादातर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में जाकर इलाज करवाना पड़ता है।
मौसमी बीमारियों के आगे दम तोड़ती अस्पतालों की व्यवस्था
गर्मी और बरसात जैसे मौसम में फैलने वाली बीमारियों को लेकर अस्पताल की व्यवस्था मरीजों के लिए मुसीबत बढ़ाने जैसी साबित होती है। डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया सहित अन्य मौसमी बीमारियों से ग्रस्त होकर आने वाले लोगों के लिए हर साल बिस्तरों का टोटा परेशान करने वाला साबित होता है। ऐसी स्थिति में मरीजों को अक्सर अस्पताल परिसर में जमीनों पर ही गुजारा चलाना पड़ता है। अस्पतालों में एंबुलेंस सेवा की स्थिति भी बेहतर नहीं है। आपातकालीन स्थिति में आर्थिक रूप से लाचार लोगों का अस्पताल तक पहुंचना बड़ी चुनौती साबित हो रही है, वहीं दूसरी ओर एक तरफ तो अस्पताल प्रबंधन डेंगू व मलेरिया जैसी बीमारियों से निजात दिलाने का दावा करता है, दूसरी ओर अस्पताल परिसर की सफाई व्यवस्था उनके दावों की पोल खोलता है। अस्पताल के अंदर शौचालयों व वार्डो की क्या हालत है, यह किसी से भी नहीं छिपी है। ऐसे में प्रबंधन स्तर पर खुद ही बीमार पड़े अस्पतालों में मरीजों का इलाज किस कदर होता होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
जागरण सुझाव
- उत्तर-पूर्वी जिले में और भी ज्यादा अस्पतालों को खोलने की आवश्यकता है। अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या भी बढ़ाई जाए। इसके लिए जनप्रतिनिधि भी फंड के माध्यम से सहायता कर सकते हैं, वहीं स्वास्थ्य विभाग को भी इस संबंध में गंभीरता दिखानी होगी।
- इलाज के लिए अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों को अक्सर सफाई व्यवस्था को लेकर शिकायत रहती है। मरीजों को इलाज प्रदान करने वाले अस्पताल खुद ही बीमार नजर आते हैं।
-अस्पताल प्रबंधन को लचर सफाई व्यवस्था को ध्यान में रखकर ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है। लचर सफाई व्यवस्था के लिए जो भी कर्मचारी या ठेके पर ली गई कंपनी जिम्मेदार हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
- चिकित्सकों और कर्मचारियों के व्यवहार पर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैं। ऐसे में तनाव में आकर मरीजों के साथ आक्रामक तरीके से पेश आने वाले चिकित्सकों को जागरूक करने की आवश्यकता है। इसके लिए जागरूकता और तनाव मुक्ति केंद्रों को भी माध्यम बनाया जा सकता है।
- उच्चाधिकारी नियमित रूप से औचक निरीक्षण कर सकते हैं। इस बीच नजर आने वाली लापरवाहियों और दोषियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई हो, जिससे चिकित्सकीय सेवा के दौरान लापरवाही का सिलसिला कम हो सके।
- अस्पताल प्रबंधन को इलाज के नाम पर गड़बड़ी फैलाने वाले लोगों के खिलाफ व्यापक अभियान चलाना चाहिए, ताकि अस्पताल परिसर में हो रहे आर्थिक शोषण पर काबू पाया जा सके।
यमुनापार के प्रमुख अस्पताल
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान, डॉ. हेडगेवार आरोग्य संस्थान, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान, जगप्रवेश चंद अस्पताल, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल।
आधिकारिक पक्ष
बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने को लेकर चिकित्सक और कर्मचारी गंभीरता से अपना काम करते हैं। छोटी-मोटी समस्याओं को दूर करने के लिए समय-समय पर इंतजामों की समीक्षा की जाती है। हमारी कोशिश रहती है कि अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले लोगों को किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े। उपलब्ध संसाधनों में बेहतर सेवा देने की भरसक कोशिश रहती है। मरीजों से अपील है कि समस्या महसूस होते ही अस्पताल में इलाज के लिए आएं। देर करने से मर्ज भी बढ़ जाता है और इलाज के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ता है।
-डॉ. एमएल जयपाल, चिकित्सा अधीक्षक, स्वामी दयानंद अस्पताल।

Sunday, May 28, 2017

आपदा का अर्थ है, अचानक होने वाली एक विध्वंसकारी घटना जिससे व्यापक भौतिक क्षति होती है, जान-माल का नुकसान होता है।

आपदा का अर्थ है, अचानक होने वाली एक विध्वंसकारी घटना जिससे व्यापक भौतिक क्षति होती है, जान-माल का नुकसान होता है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी तीसरी रिपोर्ट में आपदा के लिए डिसास्टर के स्थान पर क्राइसिस शब्द प्रयुक्त किया है। यह वह प्रतिकूल स्थिति है जो मानवीय, भौतिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक कार्यकरण को व्यापक तौर पर प्रभावित करती है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में- आपदा से तात्पर्य किसी क्षेत्र में हुएउस विध्वंस, अनिष्ट, विपत्ति या बेहद गंभीर घटना से है जो प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से या दुर्घटनावश या लापरवाही से घटित होती है और जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में मानव जीवन की हानि होती है या मानव पीड़ित होता है या संपत्ति को हानि पहुंचती है या पर्यावरण का भारी क्षरण होता है। यह घटना प्रायः प्रभावित क्षेत्र के समुदाय की सामना करने की क्षमता से अधिक भयावह होती है।
उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा पहचानी गई प्रमुख आपदाएं हैं-
  1. जल एवं जलवायु से जुड़ी आपदाएं, चक्रवात, बवण्डर एवं तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, लू व शीतलहर, हिमस्खलन, सूखा, समुद्ररक्षण, मेघगर्जन व बिजली का कड़कना;
  2. भूमि संबंधी आपदाएं, भूस्खलन एवं कीचड़ का बहाव, भूकंप, बांध का टूटना, खदान में आग;
  3. दुर्घटना संबंधी आपदाएं, जंगलों में आग लगना, शहरों में आग लगना, खदानों में पानी भरना, तेल का फैलाव, प्रमुख इमारतों का ढहना, एक साथ कई बम विस्फोट, बिजली से आग लगना, हवाई, सड़क एवं रेल दुर्घटनाएं,
  4. जैविक आपदाएं, महामारियां, कीटों का हमला, पशुओं की महामारियां, जहरीला भोजन;
  5. रासायनिक, औद्योगिक एवं परमाणु संबंधी आपदाएं, रासायनिक गैस का रिसाव, परमाणु बम गिरना।
इनके अतिरिक्त नागरिक संघर्ष, सांप्रदायिक एवं जातीय हिंसा, आदि भी आज प्रमुख आपदाएं हैं।
आधुनिक युग का भीषणतम तूफान वर्ष 1201 में मिस्र एवं सीरिया में आया था जिसमें 10 लाख लोग मारे गए थे। इसके पश्चात् सन् 1556 में चीन में आए भूकंप में 8.50 लाख व्यक्ति काल-कवलित हो गए। भारत का ज्ञात, भीषणतम भूकंप सन् 1737 में कलकत्ता में आया था जिसमें 3 लाख हताहत हुए। रूस, चीन, सीरिया, मिस्र, ईरान, जापान, जावा, इटली, मोरक्को, तुर्की, मेक्सिको, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, यूनान, इण्डोनेशिया तथा कोलम्बिया इत्यादि भूकंप के प्रति सर्वाधिक नाजुक क्षेत्र हैं। हिमालय क्षेत्र बेहद संवेदनशील है क्योंकि इस क्षेत्र की पृथ्वी की भीतरी चट्टानें निरंतर उत्तर की ओर खिसक रही हैं। विश्वभर में 10 ऐसे खतरनाक ज्वालामुखी हैं जो बड़े क्षेत्र को तबाह कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय-आपदा शमन रणनीति (यूएनआईएसडीआर) के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं के मामले में चीन के बाद दूसरा स्थान भारत का है। भारत में आपदाओं की रूपरेखा मुख्यतः भू-जलवायु स्थितियों और स्थालाकृतियों की विशेषताओं से निर्धारित होती है और उनमें जो अंतनिर्हित कमजोरियां होती हैं उन्हीं के फलस्वरूप विभिन्न तीव्रता की आपदाएं वार्षिक रूप से घटित होती रहती हैं। आवृति, प्रभाव और अनिश्चितताओं के लिहाज से जलवायु-प्रेरित आपदाओं का स्थान सबसे ऊपर है।
भारत के भू-भाग का लगभग 59 प्रतिशत भूकंप की संभावना वाला क्षेत्र है। हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र, पूर्वोत्तर, गुजरात के कुछ क्षेत्र और अंडमान निकोबार द्वीप समूह भूकंपीय दृष्टि से सबसे सक्रिय क्षेत्र हैं।
भारत में राज्यों में आपदाओं के जोखिम की विस्तृत रूपरेखा को दर्शाने वाला केवल एक ही दस्तावेज है वल्नरेविलिटी एटलस जिसे भवन निर्माण सामग्री एवं प्रौद्योगिकी संवर्द्धन केंद्र में तैयार किया है। बीएमटीपीसी द्वारा 1997 में प्रकाशित इस एटलस का नया संस्करण 2006 में तैयार किया गया था और उसमें विभिन्न आपदाओं से संबंधित ताजा जानकारियां दी गई थीं।
गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और बिहार मानव जीवन क्षति, पशुधन, मकानों और फसलों की क्षति के मामले में शीर्ष 10 राज्यों में आते हैं। आध्र प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में आपदाओं से सर्वाधिक क्षति मवेशियों की होती है। मानव जीवन की सबसे अधिक क्षति उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में होती है। मकानों और फसलों की क्षति भी इन्हीं चार राज्यों में सर्वाधिक होती है। यद्यपि जोखिम के कारणों का सही-सही पता तो उनके और विश्लेषण से ही चल सकेगा, लेकिन यह कहा जा सकता है कि उपर्युक्त राज्य उच्च जोखिम वाली श्रेणी के अंतर्गत आते हैं और उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
आपदाएं भारत में व्यापक नुकसान और विघटन का कारण रही हैं जहाँ सुखा, बाढ़ समुद्री तूफान और भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदाएं तथा कभी-कभी भीपाल में गैस रिसने जैसी मानव निर्मित त्रासदियां बारम्बार कहर ढहाती हैं। कुछ आपदाएं जैसे 1984 की भोपाल गैस दुर्घटना, 1995 में सूरत में प्लेग का प्रकोप और 1998 में ड्राप्सी महामारी स्पष्ट रूप से मानवकृत आपदाएं कही जा सकती हैं। एशिया में 1993-1997 के दौरान कई तीव्र भूकंप आएजहां जान-माल के नुकसान का अनुपात अधिक था। सन् 1999 में ओडीशा में आया महाचक्रवात, सन् 2001 में गुजरात में आया भूकंप क्षति एवं विनाश की गंभीरता के संदर्भ में विगत् सदी के अंतिम दशक की सर्वाधिक विनाशकारी विपति थी। 26 दिसंबर, 2004 को भारत के तटीय क्षेत्रों में भूकंप आया जिससे सुनामी लहरें उत्पन्न हुई और जिनसे आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु राज्यों के तटवर्ती क्षेत्र तथा पुदुचेरी एवं अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह संघ क्षेत्र प्रभावित हुए। इससे व्यापक जान-माल की क्षति हुई। उल्लेखनीय है कि सुनामी आपदा का अनुभव देश में पहली बार हुआ।
16 जून, 2013 को उत्तराखंड में बादल फटने से आई विध्वंसकारी बाढ़ एवं भू-स्खलन ने बड़ी मात्रा में जान-माल का नुकसान किया। इस विध्वंसकारी प्राकृतिक आपदा में हजारों लोग काल-कवालित हुए एवं लाखों बेघर हो गए। इस आपदा ने एक बार फिर हमारी आपदा से निपटने एवं उसके प्रबंधन पर प्रश्नचिंह खड़ा कर दिया है।
भारत में बड़े पैमाने पर और तीव्र शहरीकरण हो रहा है और यह शहरीकरण जोखिम को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा रहा है। जान-माल को उस समय अधिक खतरा पैदा हो जाता है जब ख़राब निर्माण और रखरखाव वाले आधारभूत ढांचे के उच्च घनत्व वाले क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा-पर्यावरण ह्रास, आग,बाढ़ एवं भूकंप आते हैं। भारत के पर्वतीय क्षेत्र हमारे देश का विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र का जहां विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं वाले कई प्रकार के जातीय समूह रहते हैं और सभी प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं इसी क्षेत्र में आती हैं। जिससे लोगों का सामाजिक-आर्थिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है तथा लोगों की दुर्दशा होती है। प्राकृतिक आपदाएं, समुद्री तूफान एवं उनके साथ आने वाली चक्रवाती लहरें नियमित रूप से तटवर्ती इलाकों में आती हैं और विपत्ति लाती हैं, लेकिन इन विपदाओं से होने वाला नुकसान हाल में काफी व्यापक हुआ है, जिसका मुख्य कारण तटवर्ती इलाकों में आबादी का बढ़ता दबाव है। खतरनाक क्षेत्रों में बसने की इस प्रवृत्ति तथा आने वाले दशकों में अनुमानित जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र तल के बढ़ने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन क्षेत्रों में भविष्य में आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

आपदा प्रबंधन में शामिल तत्व
आपदा प्रबंधन वह प्रक्रिया है जो आपदा के पूर्व की समस्त तैयारियों, चेतावनी, पहचान, प्रशासन, बचाव रहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण तथा आपदा से बचने के लिए अपनायी जाने वाली तत्पर अनुक्रियाशीलता इत्यादि के उपायों को इंगित करती है। आपदा प्रबंधन की खास विशेषताएं अग्रलिखित हैं-
  • आपदा प्रबंधन आपदा आने की चेतावनी से लेकर उसके पश्चात्, पुनर्वास, पुनर्निर्माण एवं भविष्य के लिए आपदा रोकथाम एवं बचाव इत्यादि कृत्यों तक विस्तारित है।
  • यह संपूर्ण लोक प्रशासन की एक ऐसी विशेषीकृत शाखा है जो प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से उत्पन्न आपदाओं के नीति नियोजन, नियंत्रण, समन्वय, रहत, बचाव एवं पुनर्वास इत्यादि का अध्ययन करती है।
  • आपदा प्रबंधन एक जटिल तथा बहुआयामी प्रक्रिया है अर्थात् केंद्र, राज्य एवं स्थानीय शासन के साथ-साथ बहुत सारे विभाग, संस्थाएं एवं समुदाय इसमें अपना योगदान देते हैं।
  • यह प्राथमिक रूप से सरकारी दायित्व को इंगित करता है किंतु सामुदायिक एवं निजी सहयोग के बिना यह कार्य अधूरा है।
  • आपदाएं सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक घटनाएं हैं इसलिए आपदा प्रबंधन का कार्य भी अंतरराष्ट्रीय समन्वय से जुड़ा हुआ है।
इसके अतिरिक्त आपदा प्रबंधन के कई आयाम हैं जिनके तहत जोखिम विश्लेषण, चेतावनी एवं वैकल्पिक व्यवस्था, बचाव एवं राहत कार्य, बहुउद्देशीय निर्णयन, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण, इत्यादि आते हैं।

वैधानिक एवं संस्थात्मक रूपरेखा
भारत में आपदा प्रबंधन का कार्य परम्परागत रूप से राज्य सरकार, सामाजिक संस्थाओं, स्वैच्छिक संगठनों तथा अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों द्वारा केंद्र सरकार के सहयोग से किया जाता रहा है। आपदा प्रबंधन की दिशा में ठोस एवं व्यापक नीति एवं कानून बनाने के प्रयास 21वीं सदी से ही शुरू होने लगे हैं। मुख्यतः कृषि, भू-राजस्व, गृह एवं सिंचाई विभागों से सम्बद्ध रहा यह कार्य स्वाभाविक रूप से बहुआयामी एवं जटिल है। भारत में स्वतंत्रता के समय से ही केंद्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष तथा राज्यों में मुख्यमंत्री राहत कोष बने हुए हैं जिनमें आपदा के दौरान सहायता राशि दी जाती रही है। बड़ी गंभीर आपदाओं की राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाता है।
बाढ़, भूकंप, समुद्री तूफान, आदि को आने से नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि वे उस प्राकृतिक पर्यावरण का हिस्सा हैं जिसमें हम रहते हैं, लेकिन हम यह कर सकते हैं की लोगों और उनकी संपत्ति के लिए जहां तक संभव हो सके इन प्राकृतिक आपदाओं के असर को हानिरहित बनाने के लिए समाज के विभिन्न स्तरों पर एहतियाती उपाय करें। खतरे अपरिहार्य हो सकते हैं, लेकिन आपदाओं को रोका जा सकता है। आपदा प्रबंधन विषय के बारे में संविधान की 7वीं अनुसूची की तीन सूचियों में कोई विवरण नहीं है। प्राकृतिक आपदा के मामले में बचाव, राहत एवं पुनर्वास की मूल जिम्मेदारी सम्बद्ध राज्य सरकारों की है तथा केंद्र सरकार की भूमिका भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों की कमी को पूरा करने तथा चेतावनी, परिवहन एवं अनाज की अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही आदि जैसे अनुपूरक उपाय करने वाले सहयोगी की होती है। विगत् दो दशकों के दौरान आई आपदाओं के विभिन्न वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, सामाजिक और वित्तीय प्रक्रियाओं को समाहित करते हुए बहुआयामी, बहुविषयक और बहुक्षेत्रक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। आतंकवाद के आंतरिक सुरक्षा के लिए एक प्रमुख खतरे के तौर पर उभरकर सामने आने से मानव निर्मित आपदा से प्रभावी ओर पेशेवर तरीके से निपटने के लिए तैयार रहने की अत्यधिक आवश्यकता महसूस की गई।
सरकार ने आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण में परिवर्तन किया है। राहत-केन्द्रित दृष्टिकोण के स्थान पर समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है जिसमें आपदा प्रबंधन के समस्त पहलुओं को आच्छादित करते हुए रोकथाम, न्यूनीकरण, तैयारी, कार्यवाही रहत और पुनर्वास को सम्मिलित किया गया है। नवीन दृष्टिकोण इस विश्वास से निकलकर आया है कि प्रक्रिया में आपदा के न्यूनीकरण के लिए प्रबंध न किए जाएं। इस दृष्टिकोण की अन्य प्रमुख बात यह भी है कि आपदा न्यूनीकरण के लिए विकास के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए एक बहु-विषयक प्रक्रिया तैयार करनी होगी। अभिमुखीकरण में परिवर्तन के अनुसार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संरचना (एनडीएमएफ) तैयार की गई है और इसे राज्य/संघ शासित क्षेत्र सरकारों के साथ बांटा गया है ताकि वे अपनी-अपनी योजनाओं को राष्ट्रीय योजना के व्यापक दिशा-निर्देशों के अनुसार संशोधित और अद्यतन कर सकें। राष्ट्रीय योजना में संस्थागततंत्रों, न्यूनीकरण, रोकथाम उपायों, विधि एवं नीति संरचना, तैयारी और कार्यवाही पूर्व चेतावनी प्रणाली, मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण को शामिल किया गया है।

केंद्रीय विधि
देश में आपदाओं का मुकाबला करने, उनमें कमी लाने तथा पीड़ित व्यक्तियों का पुनर्वास करने के लिए वंचित संस्थात्मक तंत्र तैयार करने के लिए आपदा प्रबंधन विधेयक की 28 नवम्बर, 2005 को राज्य सभा तथा 12 दिसम्बर, 2005 को लोकसभा से स्वीकृति मिली। 23 दिसम्बर, 2005 से यह कानून प्रवर्तित हो गया। इस अधिनियम में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय प्रबंधन प्राधिकरण, मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तथा जिला न्यायाधीशों की अध्यक्षता में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान है। इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना के अनुसार सम्बंधित मंत्रालयों और विभागों द्वारा विभागवार योजनाएं तैयार करने का भी प्रावधान है। इसमें आपातकालीन कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल तथा प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के गठन की भी व्यवस्था है। अधिनियम में राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही निधि तथा राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण निधि और राज्य तथा जिला स्तरों पर इसी तरह की निधियों के गठन का भी प्रावधान शामिल है। इसमें पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिकाओं जैसे शहरी स्थानीय निकायों सहित स्थानीय निकायों की विशिष्ट भूमिका निर्धारित की गई है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
कानून का अधिनियम होने तक सरकार ने 30 मई, 2005 को प्रधानमंत्री को अध्यक्ष के रूप में लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन किया। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू होने के बाद अधिनियम के उपबंधों के अनुरूप 27 सितंबर, 2006 को एनडीएमए का गठन किया गया जिसमें 9 सदस्य हैं जिनमें से एक सदस्य को उपाध्यक्ष के रूप में पदनामित किया गया है। प्राधिकरण को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में यथापरिकल्पित कार्य सौंपे गए हैं-
  • आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां, योजनाएं तथा दिशा-निर्देश निर्धारित करना;
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना तथा भारत सरकार के मंत्रालयों/विभागों द्वारा तैयार योजनाओं का अनुमोदन करना;
  • राज्य योजना निर्मित करने के लिए राज्य प्राधिकरणों के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करना;
  • आपदाओं की रोकथाम अथवा उनकी विकास योजनाओं तथा परियोजनाओं में इसके प्रभावों को कम-से-कम करने के उद्देश्य से उपायों सरकार के मंत्रालयों/विभागों द्वारा पालन किए जाने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करना;
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के कार्यकरण हेतु स्थूल नीतियों एवं दिशा-निर्देश का निर्धारण करना;
  • प्रशमन के उद्देश्य से निधियों के प्रावधान की अनुशंसा करना;
  • आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों और योजनाओं के प्रवर्तन और कार्यान्वयन का समन्वय करना;
  • बड़ी आपदाओं से प्रभावित दूसरे देशों को वैसी सहायता प्रदान करना जैसी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएं;
  • न्यूनीकरण के प्रयोजनार्थ निधियों के प्रावधान की सिफारिश करने तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संसथान की कार्यप्रणाली के लिए व्यापक नीतियां और दिशा-निर्देश निर्धारित करना।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष को धारा-6(3) के अंतर्गत यह शक्ति दी गई है कि आपातकाल की स्थिति में वह उपर्युक्त सभी या कुछ कार्य स्वयं निर्धारित कर सकेगा किंतु उनका प्राधिकरण द्वारा कार्योत्तर अनुसमर्थन अनिवार्य होगा।
परामर्शकारी समिति
आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा-7 यह प्रावधान करती है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एक सलाहकार समिति नियुक्ति कर सकता है जिसमें विभिन्न पहलुओं पर सिफारिश करने के लिए आपदा प्रबंधन के क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसकी सहायता केंद्र सरकार द्वारा गठित की जाने वाली राष्ट्रीय कार्यकारी समिति द्वारा की जाएगी।
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और केंद्र सरकार की सभी योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
आपदा जोखिम प्रबंधन कार्यक्रम
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, यूएसआईडी, यूरोपियन यूनियन और कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की सहायता से बहु-जोखिम संभावित 17 राज्यों में 169 जिलों में आपदा जोखिम प्रबंधन कार्यक्रम शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य, स्थानीय स्वशासित संस्थानों और समुदायों की भागीदारी से दीर्घावधि उपाय करना है। कार्यक्रम चलाने वाले राज्यों को राज्य, जिला और खंडस्तरीय आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करने में सहायता दी जा रही है। पंचायती राज संस्थानों, और ग्रामीण स्वयंसेवक को शामिल करके बनाए गए आपदा प्रबंधन दलों द्वारा ग्रामीण स्तरीय आपदा प्रबंधन योजना विकसित की जा रही है और उन्हें तैयारी और कार्यवाही सम्बन्धी कार्यों जैसे खोज एवं बचाव, प्राथमिक चिकित्सा, राहत समन्वय, शरण स्थल प्रबंधन योजना इत्यादि में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत ईओसी के लिए उपकरणों की व्यवस्था ऑपरेशन केंद्रों का गठन भी किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, बड़ी संख्या में स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं तथा अन्य भागीदारों को भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।
राहत मापदण्डों हेतु दिशा-निर्देश
अधिनियम में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की यह दायित्व दिया गया है कि (धारा-12) वह आपदा प्रभावित व्यक्तियों को दी जाने वाली राहत के न्यूनतम मापदण्डों के क्रम में निर्देश दे। आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा-13 यह प्रावधान करती है कि उच्च क्षमता वाली आपदाओं के समय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पीड़ितों के प्रवर्तित ऋणों पुनर्भुगतान क्रम में राहत या विशेष छूट पर नए ऋणों की स्वीकृति की अनुशंसा कर सकता है।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
आपदा प्रबंधन अधिनियम (धारा-14) सुनिश्चित करता है कि राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अध्यादेश जारी करके एक राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करेगी।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
राज्य सरकार (अधिनियम की धारा-25 के तहत्) राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले में एक जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करेगी। जिन जिलों में जिला परिषद् है, वहां जिला प्रमुख ही सह-अध्यक्ष होगा। अधिनियम में प्रावधान है कि राज्य सरकार अतिरिक्त जिला कलक्टर स्तर के अधिकारी को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करेगी।
तैयारी उपाय
जनजागरूकता एवं प्रचार सामग्री
समग्र आपदा जोखिम प्रबंधन रणनीति के एक भाग के रूप में जागरूकता पैदा करने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, और प्रिंट मीडिया की सहायता लेकर जागरूकता का दायरा विस्तृत किया जा रहा है।
राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल
आपदा स्थितियों में विशिष्ट कार्यवाही के प्रयोजनार्थ केंद्रीय पुलिस बलों की 8 बटालियनों को शामिल करके एक एनडीआरएफ गठित किया जा रहा है। इस बल का सामान्य अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में निहित होगा तथा बल की कमान और पर्यवेक्षण महानिदेशक, सिविल सुरक्षा एवं एनडीआरएफ के पास होगी।
राज्य की विशेषज्ञता प्राप्त कार्यवाही टीमें
राज्यों को आपदा से निपटने के लिए अपनी-अपनी विशेषज्ञता प्राप्त कार्यवाही टीमें गठित करने की भी सलाह दी गई है। केंद्र सरकार प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए सहायता उपलब्ध करवा रही है। राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि वे आपदा राहत निधि में अपने वार्षिक आवंटन के 10 प्रतिशत भाग का उपयोग खोज एवं बचाव उपकरण और संचार उपकरण प्राप्त करने पर व्यय कर सकते हैं।
क्षेत्रीय कार्यवाही केंद्र (आरआरसी)
15 क्षेत्रीय कार्यवाही केंद्रों की पहचान की गई है और इन्हें आवश्यक खोज बचाव उपकरणों के भण्डारण के लिए विकसित किया जा रहा है ताकि इस प्रकार के उपकरणों की नजदीकी आर.आर.सी. से आपात स्थल पर अविलम्ब पहुंचाया जा सके।
दुर्घटना कमान प्रणाली
आपदा कार्यवाही प्रबंधन के व्यवसायीकरण के लिए एक दुर्घटना नियंत्रण प्रणाली लागू की जा रही है। इस प्रणाली में दुर्घटना प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित दुर्घटना कमाण्ड और अधिकारियों के साथ विशेषज्ञता प्राप्त दुर्घटना कमाण्ड दलों की व्यवस्था है।
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक डाटा बेस
वेब पर उपलब्ध एक केंद्रीकृत डाटाबेस प्रचालन में आ गया है। भारतीय आपदा संसाधन नेटवर्क, आपदा रहत के लिए विशिष्ट उपकरणों और मानव शक्ति संसाधनों सहित आवश्यक और विष्ट संसाधनों की एक राष्ट्र स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक सूची है।
आपदा राहत कार्य
भारत सरकार के सम्बंधित मंत्रालयों एवं विभागों को सलाह दी गयी थी कि वे त्वरित कार्रवाई के लिए आपात सहायता कार्य योजना बनाएं और कार्यवाही दलों का गठन करें तथा संसाधनों की अग्रिम रूप से निर्धारित करें।
संचार नेटवर्क
बड़ी आपदा आने की स्थिति में सर्वप्रथम सामान्यतः संचार सुविधा प्रभावित होती है चूंकि ऐसी स्थिति में सामान्यतः परम्परागत संचार नेटवर्क प्रणाली ख़राब हो जाती है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है की पर्याप्त रूप से संसाधनों से युक्त एक बहुप्रणाली, बहुचैनल संचार प्रणाली स्थापित की जाए।
आपदा राहत निधि
बारहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर आवंटित राशि सहित प्रत्येक राज्य के लिए एक सीआरएफ का गठन किया गया है। सीआरएफ्. में भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा 3:1 के अनुपात में योगदान किया जाता है। गंभीर प्रकृति की आपदा आने की स्थिति में, जहां राहत अभियानों के लिए धनराशि की आवश्यकता, राज्य के सीआरएफ खाते में उपलब्ध धनराशि से अधिक होती है, तो यथानिर्धारित प्रक्रिया के पालन के पश्चात् राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि से अतिरिक्त केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली
भारतीय महासागर में सुनामी और तूफानी तरंगों की उत्पत्ति के बारे में पहले से ही चेतावनी दे देने के लिए भारत सरकार ने पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित की है।

मानव विकास रिपोर्ट और आपदा प्रबंधन
एक प्रभावी आपदा प्रबंधन नीति और व्यवस्था के लिए जरूरी है कि वैश्विक एवं देश के स्तर पर आपदा संबंधी स्थिति, सूचनाएं एवं भविष्यवाणियों की पहले समीक्षा कर ली जाए। इस कड़ी में सबसे बेहतर और जरूरी होगा यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) की वार्षिक रिपोर्ट पर गौर करना। वर्ष 2011 की मानव विकास रिपोर्ट कथित तौर पर टिकाऊ एवं न्यायसंगत विकास पर केंद्रित है। इस रिपोर्ट में इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया गया है कि नित्य हो रहे पर्यावरणीय नुकसान से दुनिया के वंचित एवं निर्धन लोगों की परेशानियां और बढ़ी हैं।
मानव विकास रिपोर्ट 2011 मानती है कि गैर-बराबरी बढ़ाने वाली प्रक्रियाएं अन्यायपूर्ण हैं। रिपोर्ट कहती है की लोगों के लिए बेहतर जिंदगी के अवसर किसी ऐसे कारक से बाधित नहीं होने चाहिए जो उसके नियंत्रण से बाहर हैं। असमानताएं विशेष रूप से तब अधिक अन्यायपूर्ण होती हैं जब एक समूह विशेष को लिंग, नस्ल या जन्म स्थान के आधार पर सुनियोजित ढंग से वंचित रखा जाता है। इस रिपोर्ट का सांख्यिकीय पूर्वानुमान बताता है की पर्यावरणीय चुनौती के परिप्रेक्ष्य तथा सन्दर्भ रेखा की तुलना में वर्ष 2050 तक मानव विकास संकेतक (एचडीआई) 8 प्रतिशत (दक्षिण एशिया तथा सब सहारा अफ्रीकी देशों में 12 प्रतिशत) कम हो जाएंगे। यह एक ऐसे पर्यावरणीय चुनौती के परिदृश्य में होगा, जिसमें वैश्विक तापन की वजह से कृषि उत्पादन, साफ पेयजल आदि में कमी आएगी और प्रदूषण की समस्याएं बढ़ेगी। इस दौरान प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि की वजह से वैश्विक एचडीआई अनुमानित संदर्भ रेखा से घटकर 15 प्रतिशत तक नीचे गिर जाएगा। रिपोर्ट कहती है कि इन आपदाओं से दुनिया की डेढ़ अरब आबादी प्रभावित होगी और इनमें सबसे ज्यादा बुरी हालत भारत सहित अन्य दक्षिण एशिया के देशों के लोगों की होगी।
मानव विकास रिपोर्ट, 2011 यह भी बताती है कि सन् 1870 से अब तक समुद्र के औसत स्तर में 20 सेंटीमीटर की वृद्धि हो चुकी है। परिवर्तन की यह दर अब अधिक तेज है। यह तेजी यदि बनी रही तो सन् 2100 में समुद्र स्तर में हुई आधे मीटर की वृद्धि से फ्रांस और इटली के क्षेत्रफल के बराबर के इलाके में, 10 लाख वर्ग किलोमीटर में, पानी भर जाएगा, और करीब 17 करोड़ लोग तबाह हो जाएंगे।
मानव विकास रिपोर्ट की इस पृष्ठभूमि में यदि हम आपदा प्रबंधन की बात करें तो हमें आशंका होती है कि प्रशासनिक ढीलापन, भ्रष्टाचार, एवं राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में हमारे आपदा प्रबंधन नीति और कार्यपालन के स्तर पर क्या हमें भविष्य की आपदाओं से सुरक्षित बचाया जा सकेगा? हमें एक मुकम्मल आपदा प्रबंधन नीति की सख्त दरकार है लेकिन इसके साथ-साथ एक साफ-सुथरा प्रशासन और राष्ट्रीय व सामाजिक भावना से ओत-प्रोत लोग भी होने चाहिए जो इस आपदा प्रबंधन की इकाई बन सकें।
आपदा प्रबंधन की कड़ी में मानव जीवन के साथ-साथ भौतिक सामानों का बीमा और बिमा में आकस्मिक आपदा, भूकंप, अग्निकांड, आतंकवाद, बढ़, तूफान, सुनामी आदि आपदाओं को शामिल करके भी एक नई पहल की जा सकती है। इसके लिए सरकार को विशेष रूप से पहल करनी पड़ेगी और आम लोगों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाना होगा ताकि लोग बीमा के महत्व को समझकर नियमित पॉलिसी ले सकें। हालांकि कुछ बीमा कंपनियां इस दिशा में कार्य कर रही हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि आकस्मिक दुर्घटना या आपदा के लिए पॉलिसी लेने वाले नागरिकों की संख्या बेहद कम है।
आपदा प्रबंधन के लिए एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए कि स्थानीय वे पारंपरिक जानकारी अधिकतर मामलों में बेहद कारगर व प्रभावी होती है। रिपोर्ट बताती है कि सुनामी के दौरान भी अंडमान में बने पुराने व पारंपरिक घर नहीं टूटे। ऐसा ही हिमालय क्षेत्र में आए भूकंप में देखा गया। वहां के कई प्राचीन व पारम्परिक भवनों, मंदिर-मस्जिदों को अधिक नुकसान नहीं हुआ। भूकंप या आपदा संभावित क्षेत्र के लोग जानते हैं कि इन आपदाओं से निबटने के लिए भवन बनाते समय मजबूत, टिकाऊ व पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल करना है। भारतीय पुरातत्व व विज्ञान तकनीक विभाग इस बात की पुष्टि करता है कि आपदाओं में प्राचीन सार्वजनिक महत्व के निर्माणों की अधिक क्षतिग्रस्त नहीं देखा गया है।
आपदा प्रबंधन के लिए एक और जरुरी बात जरुरी है, वह है- आपदाओं के साथ जीने की कला का विकास। जापान के लोग आपदाओं के साथ जीने का अभ्यास करते हैं सब जानते हैं की जापान सर्वाधिक भूकंप संभावित क्षेत्र है। खासकर जापान के उन इलाकों में भी लोग पूरे उत्साह से जीवन जीते हैं जहां लगभग प्रत्येक वर्ष भूकंप के झटके आते रहते हैं। उत्तर बिहार के कोसी क्षेत्र के लोग जो लगभग प्रत्येक वर्ष भीषण बढ़ की आपदा झेलते हैं कभी बढ़ को कोसते नहीं। वहां के लोग कहते हैं- बाढ़ से जीबौबांध से मरबौ, अर्थात् हम बाढ़ से जीते हैं और बांध से मरते हैं। कई जाने-माने वैज्ञानिक एवं बिहार बाढ़ विशेषज्ञ तथा कोसी क्षेत्र से जुड़े समाजकर्मी इस अनुभव को बेहतर समझते हैं।

आपदा प्रबंधन की चुनौतियां
विभिन्न राज्यों में आपदाओं से निपटने में केंद्र के सामने अनेक चुनौतियां हैं। अधिकांश आपदाएं जलीय और मौसम विज्ञान संबंधी खतरों के कारण आती हैं। दुर्भाग्यवश इनकी संख्या, भयावहता और तीव्रता बढ़ती जा रही है। जोखिम की संभावना वाले अधिकतर राज्यों में इन भीषण घटनाओं में निपटने की तैयारियां पर्याप्त नहीं हैं। इन आपदाओं का चरित्र पूर्व की तुलना में अब अधिक भयावह होता जा रहा है। घटनाओं की प्रकृति में यह परिवर्तन केवल उनकी तीव्रता अथवा प्रभाव क्षेत्र में कालांतर में आए परिवर्तन तक ही सीमित नहीं रह गया है, अपितु अब यह घटनाएं नए-नए क्षेत्रों में भी घटित होने लगी हैं-
  • ऐसे में जबकि सरकार के पास कार्रवाई करने की व्यवस्था मौजूद है और क्षमताओं को सुदृढ़ बनाया जा रहा है, देश को आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में विशेषज्ञ वृत्तिजीवियों की आवश्यकता है ताकि आपदाओं को रोका जा सके और उनका शमन किया जा सके। लेकिन इसके लिए सरकार में और उसके बाहर, जिसमें अकादमिक संस्थाएं भी शामिल हैं, मानव कौशल विकास की उपलब्ध क्षमता सर्वथा अपर्याप्त हैं।
  • संस्थागत संरचना, नीतियों, कानूनों और दिशा-निर्देशों के रूप में हमारे पास एक सहायक वातावरण मौजूद है। अनेक राज्यों में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण अभी भी काम करने की स्थिति में नहीं है। अनेक राज्यों में अभी भी उच्च राज्य स्तरीय कार्य योजना तैयार नहीं हो सकी है।
  • वित्त मंत्रालय ने स्वीकृति की पूर्व शर्त के रूप में सभी नई परियोजनाओं को आपदा शमन के नजरिए से छानबीन करने के आदेश जारी तो किए हैं, परंतु इसके प्रमाणित करने वाले अधिकारियों के पास ऐसा करने की वांछित योग्यता ही नहीं है।
  • जोखिम को कम करने के लिए जिस चीज की सर्वाधिक जरूरत होती है, वह है- जोखिम की अच्छी समझ। सभी राज्य सरकारें जोखिम के विस्तृत आकलन की पद्धति से परिचित नहीं हैं और इस कार्य को हाथ में लेने की सरकार की पर्याप्त क्षमता भी नहीं हैं।
  • आपदा के जोखिम को कम करने के प्रयासों को विकास के एक मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए। पंचवर्षीय योजनाओं (10वीं और 11वीं) में स्पष्ट रूप से ऐसा करने को कहा गया है, परंतु व्यवहार में ऐसा नहीं हो रहा है।
  • जलवायु से जुड़े जोखिम संबंधी प्रबंधन को विकास की समस्याओं के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है और उसकी क्षमता के विकास की भी आवश्यकता है। कृषि, खाद्य सुरक्षा, जल संसाधन, अधोसंरचना और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों से जुड़े संबंधित विभागों को अपने वैकल्पिक प्रयासों में आपदा जोखिम शमन को प्रमुखता से सम्मिलित करना होगा। चल रहे कार्यक्रमों को भी आपदा जोखिम शमन से समेकित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • मानव संसाधन विकास को व्यवस्थित रूप देना होगा। क्षमताओं के विकास के लिए मात्र प्रशिक्षण ही पर्याप्त नहीं होगा। प्रशिक्षकों और प्रशिक्षणार्थियों का चयन व्यवस्थित ढंग से करना होगा और पुनश्चर्या प्रशिक्षण कार्यक्रम का प्रावधान करना होगा।
  • भीषण आपदाओं से निपटने के अनेक पारंपरिक ज्ञान (तौर-तरीकों) को या तो हम भूल चुके हैं या फिर उनको आजमाया नहीं जाता। इनमें से अनेक को पुनर्जीवित कर कुछ वैज्ञानिक पुट देकर उन्हें और सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
  • जोखिम की संभावना वाले समुदायों के खतरे में कमी लाने यानी उसका सामना करने के लिए समर्थ और सशक्त बनाना होगा। भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के साथ-साथ विभिन्न क्रियाओं, तैयारियों और शमन के उपायों को व्यवस्थित रूप से अंजाम देने वाली सामुदायिक आपदा प्रबंधन योजनाओं को लागू करना होगा। इन योजनाओं की प्रभाविकता के परीक्षण के लिए बनावटी अभ्यास (मॉक ड्रिल) की भी आवश्यकता है।
गौरतलब है कि आपदा प्रबंधन की सरकार के केवल एक विभाग के कार्य के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह सभी विभागों और विकास सहभागियों का उत्तरदायित्व है। भीषण आपदाओं से हो सकने वाली संभावित मुसीबतों और विद्यमान जोखिम को समझना महत्वपूर्ण होगा और उनसे जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयारियां बढ़ानी होगी। राज्य और जिला योजनाओं के अतिरिक्त प्रत्येक भवन और परिवार की आपदा प्रबंधन योजनाएं तथा उनके लिए तैयारियां होनी चाहिए। निवारण की संस्कृति हमारी जीवनशैली में ही शामिल होनी चाहिए। कोई विवशता अथवा कृतज्ञता की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आपदाओं के प्रबंधन के तीन चरण होते हैं-
  1. रोकथाम के उपायों द्वारा क्षेत्र को आपदा शून्य करना;
  2. आपदा से निपटने की तैयारी; और
  3. आपदा पश्चात् राहत एवं बचाव तथा पुनर्वास।
प्राकृतिक आपदा हो या मानव निर्मित आपदा हो, या मानव निर्मित आपदा हो, प्रत्येक स्थिति में जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों एवं उच्चाधिकारियों की ओर आशा भरी नजरों से देखती है। अतः शासन-प्रशासन की इसके प्रशमन में महत्ती भूमिका होती है। सारांशतः सुनियोजित आपदा प्रबंध तकनीकें, जागरूकता अभियान एवं प्रशासनिक समन्वय द्वारा आपदाओं के प्रभावों को न्यूनतम किया जा सकता है।