Tuesday, May 30, 2017

सरकारी अस्पतालों के हालात को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बेहतर स्वास्थ्य सेवा आज भी लोगों की पहुंच से दूर है।

सरकारी अस्पतालों के हालात को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बेहतर स्वास्थ्य सेवा आज भी लोगों की पहुंच से दूर है। ज्यादातर लोग अगर कोई विशेष मजबूरी न हो तो इलाज से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राइवेट अस्पतालों की महंगी सेवा लेने को ही मजबूर हैं। यमुनापार में सरकारी अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। इलाज से पहले ही मरीजों और उनके परिजनों को यह समझाना पड़ता है कि संघर्ष के बाद ही इलाज कराने में उन्हें सफलता मिलेगी। ज्यादातर अस्पतालों में अव्यवस्था होने के कारण लोगों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है। समय-समय पर राजनीतिक और आधिकारिक गलियारों से स्वास्थ्य संबंधित सेवाओं को सुधारने को लेकर आश्वासन मिलते रहते हैं, लेकिन एक अरसा बीत जाने के बाद भी अस्पतालों के हालात में बहुप्रतीक्षित सुधार की उम्मीद बेमानी ही बनी हुई है। इलाके के ज्यादातर अस्पतालों में बिस्तरों के साथ-साथ स्टाफ की कमी भी है। हर में सरकारी अस्पतालों का हाल प्रशासनिक उपेक्षा के चलते बेहाल है, वहीं यमुनापार के स्वास्थ्य केंद्रों में भी लापरवाही कभी भी किसी मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। हाल ही में जिला प्रशासन ने प्रीत विहार उपमंडल में स्वास्थ केंद्रों का औचक निरीक्षण किया था। इस दौरान कई स्वास्थ केंद्रों में लापरवाही उजागर हुई थी। स्वास्थ्य केंद्रों के रिकार्ड और स्टाक में भी भारी अंतर का पता चला था। वहीं एक्पायर हो चुकी दवाइयों की मौजूदगी का भी खुलासा हुआ था। इस प्रकार के खुलासे के बाद इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर क्या होगा, यह खुद ही सोचा जा सकता है। बहरहाल, वजह जो कुछ भी हो,
लेकिन इसका खामियाजा मरीजों को ही उठाना पड़ता है। हाल ही में लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में पांच साल के अंदर साढ़े चार हजार मरीजों की मौत का मामला उजागर हुआ था। इसके बाद मानवाधिकार आयोग ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को तलब करते हुए मामले की जांच कर आठ हफ्तों के भीतर रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं। एक के बाद एक खुलासे के बाद इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं की कैसी स्थिति होगी, यह समझने वाली बात है। साथ ही बेहतर स्वास्थ्य समेत बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के सरकारी दावे भी खोखले साबित हो रहे हैं।
नामचीन अस्पतालों में मरीज बेहाल
यमुनापार इलाके में कहने को तो एक से एक अस्पताल हैं, लेकिन इन अस्पतालों की चारदीवारी के अंदर मरीजों का हाल बुरा है। इसकी पुष्टि मरीजों और घटनाओं के माध्यम से होती रही है। चिकित्सकों, अस्पताल प्रबंधन और कर्मचारियों के व्यवहार से भी स्वास्थ्य सेवाओं की कलई कई बार खुल चुकी है, लेकिन हर बार सेवाएं बेहतर करने की बात कर उदासीनता पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही है। इलाके के ज्यादातर अस्पतालों में दवाओं का अभाव सदा बना रहता है, वहीं बिस्तरों की कमी के चलते भी यहां आने वाले मरीजों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में वार्ड संबंधी जानकारी आसानी से न मिलने के कारण मरीजों तक पहुंचने के लिए बड़ी संख्या में आने वाले परिजनों को लंबे चक्कर काटने पड़ते हैं, वहीं चिकित्सकों की लापरवाही के चलते मरीजों की जान से खिलवाड़ होने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। हालातों पर गौर करें तो ऐसा साफ दिखाई दे रहा है कि अस्पताल में मरीज की जान से कर्मचारियों का कोई सरोकार नहीं रह गया है। जीटीबी अस्पताल में साफ-सफाई के अभाव के चलते मरीजों व परिजनों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शौचालयों में दुर्गध के चलते मरीज परेशान रहते हैं। यहा आवारा पशु खुलेआम घूमते रहते हैं। कई बार यहा मरीजों को घटों लाइनों में लगे होने के बावजूद पर्याप्त दवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। यही हाल स्वामी दयानंद अस्पताल का भी है, जहा अस्पताल स्टाफ का व्यवहार यहा आने वाले लोगों से ठीक नहीं देखा जाता है। लोगों की मानें तो सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर रिश्वत की माग कर्मचारियों की ओर से किए जाने के कारण भेदभाव का माहौल बना हुआ है। कई सरकारी अस्पतालों में ब्लड बैंक खस्ताहाल हैं। जीटीबी, स्वामी दयानंद के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल व जग प्रवेशचंद्र अस्पताल भी स्टाफ की कमी झेल रहे हैं।
मरीजों की लंबी कतारों के सामने बेबस चिकित्सा व्यवस्था
इलाके के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों की लंबी कतारें होती है। यह आलम ओपीडी सेवा के साथ ही दवाइयों को लेकर भी रहता है। लोगों के मुताबिक मरीजों की कतारों के बीच ही बड़ा खेल चलता है। अपने अनुभवों के आधार पर लोगों ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराना पीड़ा बढ़ाने जैसा साबित होता है। चिकित्सकों का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार और कर्मचारियों में सेवा भावना की कमी अक्सर मरीजों का दर्द बढ़ाने का काम करती है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि इलाज के नाम पर मिलने वाली परेशानी का फायदा बिचौलियों को मिलता है। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर ऐसे लोग पहले से ही परेशान लोगों को अपने चंगुल में फंसाकर उनका आर्थिक दोहन करते हैं। इन सबसे आजिज आकर ज्यादातर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में जाकर इलाज करवाना पड़ता है।
मौसमी बीमारियों के आगे दम तोड़ती अस्पतालों की व्यवस्था
गर्मी और बरसात जैसे मौसम में फैलने वाली बीमारियों को लेकर अस्पताल की व्यवस्था मरीजों के लिए मुसीबत बढ़ाने जैसी साबित होती है। डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया सहित अन्य मौसमी बीमारियों से ग्रस्त होकर आने वाले लोगों के लिए हर साल बिस्तरों का टोटा परेशान करने वाला साबित होता है। ऐसी स्थिति में मरीजों को अक्सर अस्पताल परिसर में जमीनों पर ही गुजारा चलाना पड़ता है। अस्पतालों में एंबुलेंस सेवा की स्थिति भी बेहतर नहीं है। आपातकालीन स्थिति में आर्थिक रूप से लाचार लोगों का अस्पताल तक पहुंचना बड़ी चुनौती साबित हो रही है, वहीं दूसरी ओर एक तरफ तो अस्पताल प्रबंधन डेंगू व मलेरिया जैसी बीमारियों से निजात दिलाने का दावा करता है, दूसरी ओर अस्पताल परिसर की सफाई व्यवस्था उनके दावों की पोल खोलता है। अस्पताल के अंदर शौचालयों व वार्डो की क्या हालत है, यह किसी से भी नहीं छिपी है। ऐसे में प्रबंधन स्तर पर खुद ही बीमार पड़े अस्पतालों में मरीजों का इलाज किस कदर होता होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
जागरण सुझाव
- उत्तर-पूर्वी जिले में और भी ज्यादा अस्पतालों को खोलने की आवश्यकता है। अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या भी बढ़ाई जाए। इसके लिए जनप्रतिनिधि भी फंड के माध्यम से सहायता कर सकते हैं, वहीं स्वास्थ्य विभाग को भी इस संबंध में गंभीरता दिखानी होगी।
- इलाज के लिए अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों को अक्सर सफाई व्यवस्था को लेकर शिकायत रहती है। मरीजों को इलाज प्रदान करने वाले अस्पताल खुद ही बीमार नजर आते हैं।
-अस्पताल प्रबंधन को लचर सफाई व्यवस्था को ध्यान में रखकर ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है। लचर सफाई व्यवस्था के लिए जो भी कर्मचारी या ठेके पर ली गई कंपनी जिम्मेदार हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
- चिकित्सकों और कर्मचारियों के व्यवहार पर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैं। ऐसे में तनाव में आकर मरीजों के साथ आक्रामक तरीके से पेश आने वाले चिकित्सकों को जागरूक करने की आवश्यकता है। इसके लिए जागरूकता और तनाव मुक्ति केंद्रों को भी माध्यम बनाया जा सकता है।
- उच्चाधिकारी नियमित रूप से औचक निरीक्षण कर सकते हैं। इस बीच नजर आने वाली लापरवाहियों और दोषियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई हो, जिससे चिकित्सकीय सेवा के दौरान लापरवाही का सिलसिला कम हो सके।
- अस्पताल प्रबंधन को इलाज के नाम पर गड़बड़ी फैलाने वाले लोगों के खिलाफ व्यापक अभियान चलाना चाहिए, ताकि अस्पताल परिसर में हो रहे आर्थिक शोषण पर काबू पाया जा सके।
यमुनापार के प्रमुख अस्पताल
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान, डॉ. हेडगेवार आरोग्य संस्थान, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान, जगप्रवेश चंद अस्पताल, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल।
आधिकारिक पक्ष
बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने को लेकर चिकित्सक और कर्मचारी गंभीरता से अपना काम करते हैं। छोटी-मोटी समस्याओं को दूर करने के लिए समय-समय पर इंतजामों की समीक्षा की जाती है। हमारी कोशिश रहती है कि अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले लोगों को किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े। उपलब्ध संसाधनों में बेहतर सेवा देने की भरसक कोशिश रहती है। मरीजों से अपील है कि समस्या महसूस होते ही अस्पताल में इलाज के लिए आएं। देर करने से मर्ज भी बढ़ जाता है और इलाज के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ता है।
-डॉ. एमएल जयपाल, चिकित्सा अधीक्षक, स्वामी दयानंद अस्पताल।

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